1935 भारत शासन अधिनियम mp online test|MPPSC PRE 2025
भारत शासन अधिनियम 1935 (Government of India Act 1935) भारत के संवैधानिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण कानून था। इस अधिनियम ने ब्रिटिश भारत में शासन की प्रणाली में कई बदलाव लाए और भविष्य में भारत के संवैधानिक विकास की नींव रखी। इस अधिनियम ने भारत में संघीय ढांचे की परिकल्पना की और भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एक विस्तृत प्रशासनिक ढांचा तैयार किया।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. संघीय शासन प्रणाली (Federal System):
इस अधिनियम ने भारत में एक संघीय प्रणाली की स्थापना की, जिसमें ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों को शामिल करने की योजना थी।
संघीय संरचना के तहत केन्द्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया।
हालांकि, देशी रियासतें संघ में शामिल नहीं हुईं, इसलिए संघीय योजना पूरी तरह से लागू नहीं हो सकी।
2. प्रांतीय स्वायत्तता (Provincial Autonomy):
अधिनियम के तहत प्रांतों को स्वायत्तता दी गई और उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की गई।
प्रांतों में द्वैध शासन (Diarchy) को समाप्त कर दिया गया और प्रांतीय मंत्रियों को अधिक स्वतंत्रता दी गई।
प्रांतीय विधायिकाओं के चुनाव सीधे जनता द्वारा किए जाने लगे, और मंत्रियों को विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया।
3. द्विसदनीय विधानमंडल (Bicameral Legislature):
कई प्रांतों में द्विसदनीय विधानमंडल की स्थापना की गई, जिसमें एक उच्च सदन (Legislative Council) और एक निम्न सदन (Legislative Assembly) था।
4. केन्द्र में द्वैध शासन (Diarchy at Centre):
केंद्र में द्वैध शासन की प्रणाली लागू की गई, जिसका मतलब था कि कुछ विभाग भारतीय मंत्रियों द्वारा और कुछ विभाग ब्रिटिश गवर्नर-जनरल द्वारा संचालित किए जाएंगे।
हालांकि, यह व्यवस्था सफल नहीं रही और केन्द्र में ब्रिटिश गवर्नर-जनरल की शक्ति बहुत अधिक रही।
5. मौलिक अधिकार और न्यायिक सुधारों का अभाव:
इस अधिनियम में भारतीयों को मौलिक अधिकार नहीं दिए गए थे, और न्यायिक सुधारों की आवश्यकता के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे।
6. रक्षा और विदेश नीति पर नियंत्रण:
रक्षा और विदेश नीति जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गवर्नर-जनरल और ब्रिटिश सरकार का पूर्ण नियंत्रण था।
7. संविधान सभा का प्रस्ताव:
इस अधिनियम के तहत एक संघीय न्यायालय (Federal Court) की स्थापना की गई, जो केन्द्र और प्रांतों के बीच विवादों का निपटारा करती थी।
8. मताधिकार का सीमित विस्तार:
इस अधिनियम के तहत कुछ हद तक मताधिकार का विस्तार किया गया, लेकिन यह अभी भी सीमित था और केवल कुछ विशेष वर्गों को ही वोट डालने का अधिकार दिया गया।
9. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना:
इस अधिनियम के तहत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई, जो भारत की मुद्रा और बैंकिंग प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए उत्तरदायी था।
महत्व और प्रभाव:
यद्यपि यह अधिनियम भारत को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान नहीं करता था, यह भविष्य में भारतीय स्वतंत्रता और संवैधानिक सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
इस अधिनियम के तहत प्रांतीय स्वायत्तता ने भारतीय नेताओं को प्रशासन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर दिया।
भारतीय संविधान के कई प्रावधान जैसे संघीय ढांचा, केन्द्र-राज्य संबंध और न्यायिक प्रणाली इस अधिनियम से प्रेरित थे।
हालांकि इस अधिनियम ने भारतीय राजनीति में कुछ सुधार किए, लेकिन यह भारतीय नेताओं और जनता की आकांक्षाओं को पूरी तरह से पूरा नहीं कर सका, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और तेज़ हो गया।
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