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मूलाधार चक्र -- इसका बीजाक्षर है - "लं", शक्ति का केंद्र - लाल रंग और चार पंखुडिय़ों वाला कमल है।
- यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से के पास होता है, कुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है.
- चौकोर तथा उगते हुये सूर्य के समान स्वर्ण वर्ण का है. सुगंध और आरोग्य इसी चक्र से नियंत्रित होते हैं.धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है. मूलाधार या मूल चक्र प्रवृत्ति, सुरक्षा, अस्तित्व और मानव की मौलिक क्षमता से संबंधित है। यह केंद्र गुप्तांग और गुदा के बीच अवस्थित होता है। शुक्राणु और डिंब के बीच एक समानांतर रूपरेखा होती है, जहां जनन संहिता और कुंडलिनी कुंडली बना कर रहता है। शारीरिक रूप से काम-वासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।
स्वाधिष्ठान चक्र - यह चक्र छह पंखुड़ियों का है. इस चक्र का बीज मंत्र है - "वं"
- जनन अंग के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है, चक्र का स्वरुप अर्ध-चन्द्राकार है, जल तत्त्व का चक्र है
- इस चक्र से निम्न भावनाएँ नियंत्रित होती हैं. अवहेलना, सामान्य बुद्धि का अभाव,आग्रह,अविश्वास,सर्वनाश और क्रूरता.कमिटमेंट और साहस बढ़ाता है.स्वाधिष्ठान को आमतौर पर मूत्र तंत्र और अधिवृक्कसे संबंधित भी माना जाता है। स्वाधिष्ठान का मुख्य विषय संबंध, हिंसा, व्यसनों, मौलिक भावनात्मक आवश्यकताएं और सुख है।शारीरिक रूप से स्वाधिष्ठान प्रजनन, मानसिक रूप से रचनात्मकता, भावनात्मक रूप से खुशी और आध्यात्मिक रूप से उत्सुकता को नियंत्रित करता है।
मणिपुर चक्र - यह चक्र १० पंखुड़ियों का है, इस चक्र का बीज मंत्र है- "रं" - रंग पीला है।
- यह चक्र नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है. इस चक्र की आकृति त्रिकोण है, और रंग रक्त के समान लाल है.
- यह चक्र ऊर्जा का सब से बड़ा केंद्र है , यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचरण होता है. यह अग्नि तत्त्व को नियंत्रित करता हैऔर राजसिक गुण से संपन्न है. इस चक्र सेनिम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं- लज्जा, दुष्ट, भाव, ईर्ष्या, सुषुप्ति,विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह, घृणा, भय.संतुष्टि का भाव. मन या शरीर पर पड़नेवाला प्रभाव सीधा मणिपुर चक्र पर पड़ता है. ये पाचन में, निजी बल, भय, व्यग्रता, मत निर्माण, अंतर्मुखता और सहज या मौलिक से लेकर जटिल भावना तक के परिवर्तन, शारीरिक रूप से पाचन, मानसिक रूप से निजी बल, भावनात्मक रूप से व्यापकता और आध्यात्मिक रूप से सभी उपादानों के विकास को नियंत्रित करता है।
अनाहत चक्र -- इस चक्र का बीज मंत्र है. "यं". इस चक्र में १२ पंखुड़ियां हैं.
- ह्रदय के बीचों बीच रीढ़ की हड्डी पर स्थित है. सतोगुण की शुरुआत होती है. भय और तनाव दूर करता है. इसी चक्र से व्यक्ति की भावनाएँ और अनुभूतियों की शुरुआत होती है. इसका वर्ण हल्का हरा है. इसका आकार षठकोण का है. बाल्यग्रंथि प्रतिरक्षा प्रणाली का तत्व है, इसके साथ ही यह अंत:स्त्रावी तंत्र का भी हिस्सा है। यह चक्र तनाव के प्रतिकूल प्रभाव से भी बचाव का काम करता है। अनाहत से जुड़े मुख्य विषय जटिल भावनाएं, करुणा, सहृदयता, समर्पित प्रेम, संतुलन, अस्वीकृति और कल्याण है। शारीरिक रूप से संचालन को नियंत्रित करता है, भावनात्मक रूप से अपने और दूसरों के लिए समर्पित प्रेम, मनासिक रूप से आवेश और आध्यात्मिक रूप से समर्पण को नियंत्रित करता है।
विशुद्ध चक्र - - इस चक्र की १६ पंखुड़ियां हैं. इसका बीज मंत्र है - "हं" - कंठ के ठीक पीछे स्थित
उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूतियाँ देता है, सारी सिद्धियाँ इसी चक्र में पायी जाती हैं. यह चक्र बहुरंगा है और आकाश तत्त्व और आठों सिद्धियों से सम्बन्ध रखता है. कुंडली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र सेआती है. भौतिक ज्ञान, कल्याण, महान कार्य, ईश्वर में समर्पण, विष और अमृत.इस चक्र के गड़बड़ होने से थाईराइड जैसी समस्याएँ और वाणी की विकृति पैदा होती है.वाणी में प्रभाव देता है, यह चक्र गलग्रंथि के समानांतर है और थायरॉयड हारमोन उत्पन्न करता है, जिससे विकास और परिपक्वता आती है। इसका प्रतीक सोलह पंखुडिय़ों वाला कमल है। विशुद्ध की पहचान हल्के या पीलापन लिये हुए नीले या फिरोजी रंग है। यह आत्माभिव्यक्ति और संप्रेषण जैसे विषयों, जैसा कि ऊपर चर्चा की गयी हैं, को नियंत्रित करता है। शारीरिक रूप से विशुद्ध संप्रेषण, भावनात्मक रूप से स्वतंत्रता, मानसिक रूप से उन्मुक्त विचार और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है।
आज्ञा चक्र - इस चक्र के दो अक्षर और दो बीज मंत्र हैं - ह और क्ष - - दोनों भौहों के बीच स्थित
-आज्ञा चक्र का प्रतीक दो पंखुडिय़ों वाला कमल है और यह सफेद, नीले या गहरे नीले रंग से मेल खाता है।
- चक्र का कोई ध्यान मंत्र नहीं है क्योंकि यह पांच तत्वों और मन सेऊपर होता है.
- इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं.आज्ञा का मुख्य विषय उच्च और निम्न अहम को संतुलित करना और अंतरस्थ मार्गदर्शन पर विश्वास करना है। आज्ञा का निहित भाव अंतज्र्ञान को उपयोग में लाना है। मानसिक रूप से, आज्ञा दृश्य चेतना के साथ जुड़ा होता है। भावनात्मक रूप से, आज्ञा शुद्धता के साथ सहज ज्ञान के स्तर से जुड़ा होता है।
सहस्त्रार चक्र - यह हजार पंखुड़ियों वाला है , और बिलकुल उजले सफ़ेद रंग का है. सिर के शीर्ष पर अवस्थित होता है।
- कुण्डलिनी जब इस चक्र पर पहुँचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता और मुक्ति की अवस्था मेंआ जाती है.
- शुद्ध चेतना का चक्र माना जाता है। सहस्रार बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करती है और यह आतंरिक बुद्धि और दैहिक मृत्यु से जुड़ी होती है। सहस्रार का आतंरिक स्वरूप कर्म के निर्मोचन से, दैहिक क्रिया ध्यान से, मानसिक क्रिया सार्वभौमिक चेतना और एकता से और भावनात्मक क्रिया अस्तित्व से जुड़ा होता है।
Негізгі бет 7 Chakra Healing | Beej Mantra | 7 Min Meditation | 7 चक्र ध्यान
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