ख़िज़ाँ की रूत में गुलाब लहजा, बना के रखना कमाल ये है.
हवा की ज़द पे दिया जलाना, जला के रखना कमाल ये है.
ज़रा सी लग़ज़िश पे तोड़ देते हैं सब त'आल्लुक़ ज़माने वाले,
सो ऐसे-वैसों से भी त'आल्लुक़ बना के रखना, कमाल ये है.
किसी को देना ये मशवरा कि वो दुख बिछड़ने का भूल जाये,
और ऐसे लम्हे में अपने आँसू छिपा के रखना, कमाल ये है.
ख़्याल अपना, मिज़ाज अपना, पसंद अपनी, कमाल क्या है !
जो यार चाहे वो हाल अपना बना के रखना, कमाल ये है.
किसी की राह से ख़ुदा की ख़ातिर, उठा के काँटे, हटा के पत्थर,
फिर उस के आगे निगाह अपनी झुका के रखना, कमाल ये है.
वो जिस को देखे तो दुख का लश्कर भी लड़खड़ाये, शिकस्त खाये ,
लबों पे अपने वो मुस्कुराहट सजा के रखना, कमाल ये है.
हज़ार ताक़त हो, सौ दलीलें हों, फिर भी लहजे में आजिज़ी से/
अदब की लज़्ज़त, दुआ की ख़ुश्बू बसा के रखना, कमाल ये है.
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