A Podcast with Bhojpuri singer Kalpana Patwari at TVC Gupshup
कैसे भोजपुरी ने चुना कल्पना पटवारी को I भोजपुरी गाने बढ़ रहे हैं एक नई दिशा की ओर I
तीन कठिया नील नील खेती लेलेबां प्राणावा राम राम हौरे हौरे इ जे डूब गइए सभरे किसानवा राम राम हौरे हौरे
इस बार के #tvcgupshup के इस एपीसोड की शुरूआत कुछ इसी तरह उपरोक्त गीत से हुई जिसे मशहूर सिंगर कल्पना पटवारी ने गाया है. ‘गणेश के पापा” भोजपुरी गाने से पूरे देश में मशहूर हो जानेवाली असम की यह लड़की आज भोजपुरी की अस्मिता के लिए लड़ रही है. उपरोक्त गाना उनके उस एल्बम का हिस्सा है जिसमें चंपारण सत्याग्रह औऱ गांधी जी की भूमिका को दर्शाते हुए उस गाथा को भोजपुरी औऱ हिन्दी में पिरोया गया है जो अद्भुत है. भोजपुरी को अश्लील कहने पर कल्पना दुखी होती है. वह भोजपुरी की प्रतिष्ठा के लिए भोजपुरी के शेक्सपियर कहेजानेवाले भिखारी ठाकुर पर शोध कर रही है. टीवीसी गपशप में अन्नी अमृता के साथ विस्तार से बाचचीत करते हुए कल्पना ने बताया कि उन्होंने भोजपुरी को नहीं, कैसे भोजपुरी ने उन्हें चुना. शुरूआत में भाषा की उतनी समझ न होने पर कुछ गलत गाने गा दिए, लेकिन अब वह भोजपुरी की अस्मिता के लिए, भिखारी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने के लिए, भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए आवाज उठा रही हैं. वे आह्वान कर रही हैं कि पूर्वांचल इलाके(बिहार यूपी) के लोगों को आंदोलन करना होगा.
कल्पना का कहना है कि शुरू में एक कलाकार को नाम शोहरत औऱ मुंबई जैसे शहर में सरवाइव करने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है तो उनकी शुरूआती गलतियों को जनता माफ करे और आज जो वो भोजपुरी के लिए आवाज उठा रही है, उसमें लोग साथ दें. कल्पना ने कहा कि उनका जीवन अब पूरी तरह भोजपुरी को समर्पित हैं. उन्होंने कहा कि वे भूपेन्द्र हजारिका की धरती से आई हैं औऱ अपनी भाषा-संस्कृति के मूल्य को बखूबी पहचानती हैं, इसलिए ‘गणेश के पापा’ से अब भिखारी ठाकुर के शोध औऱ भोजपुरी के लिए आवाज उठाती कल्पना का जो सफर है वह लोगों के लिए नया हो सकता है, पर वास्तव में वे ऐसी ही हैं.
कल्पना ने बीच में भाजपा ज्वाइन किया था लेकिन आगे चलकर लगा कि राजनीति में रहकर वे खुलकर गायन नहीं कर पाएंगी क्योंकि कुछ गाने सरकार की आलोचना दर्शाते हैं. कोविड के समय मजदूर सपरिवार पैदल ही विभिन्न राज्यों से अपने राज्य यूपी बिहार चल पड़े थे. रोजी रोटी के लिए गांव छोड़कर बड़े शहरों को जानेवाले यूपी-बिहार के मजदूरों की हालत पर उन्होंने एक भावनात्मक गीत भी गाया था.
कल्पना के पिता लोकगायक थे और विरासत में मिले संगीत को उन्होंने आगे बढ़ाया. पिता से सीखने के साथ ही कल्पना ने लखनऊ से संगीत में आगे की शिक्षा हासिल की. कल्पना क्लासिकल, भोजपुरी हर तरह के गीत गा लेती हैं. भूपेन्द्र हजारिका के गीत भी बखूबी गाती हैं. वे आईटम सॉन्ग बहुत गा चुकी हैं लेकिन उन्होंने खुद को किसी दायरे में नहीं रखा..गायन प्रतिभा कूट कूट कर भरी है लेकिन कल्पना सिर्फ एक गायिका नहीं है, वह एक विचार है, एक आवाज़ है.
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Interview: Anni Amrita
Camera: Rajeev Ranjan Singh & Raj Karmakar
Edit: @vishwajitkumar
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