अंतर्मुखी होने पर ही शांति - अखंड ज्योति मार्च 1941 । Akhand Jyoti march 1941 । By G5bharat
अंतर्मुखी होने पर ही शांति
अपनी दृष्टि को बाहर से हटाकर अंदर डालना चाहिए, अध्यात्म-पथ का अवलंबन लेना चाहिए। जगत् में इधर-उधर भटकने वाला प्राणी इसी शीतल वृक्ष के नीचे शांति प्राप्त कर सकता है।
जब बाहर की माया रूपी वस्तुओं के भ्रम से विमुख होकर हम अंतर्मुखी होते हैं, आत्मचिंतन करते हैं, तो प्रतीत होता है कि हम अपने स्थान से बहुत दूर भटक गए थे।
आवश्यकताएँ कभी पूर्ण नहीं हो सकती हैं, उन्हें जितना ही तृप्त करने का प्रयत्न किया जाएगा, उतना ही वे अग्नि में घृत डालने की तरह और अधिक बढ़ती जाएँगी। इसलिए इस छाया के पीछे दौड़ने की अपेक्षा उसकी ओर से पीठ फेरनी चाहिए और सोचना चाहिए कि हम कौड़ियों के लिए क्यों मारे-मारे फिर रहे हैं, जब कि हमारे अपने घर में भंडार भरा हुआ है।
अंतर में मुँह देखने पर, परमात्मा के निकट उपस्थित होने पर, वह ताली मिल जाती है, जिससे सुख और शांति के अक्षय भंडार का दरवाजा खुलता है।
अपनी वास्तविक स्थिति को जानने से, आत्मस्वरूप को पहचानने से, संसार के स्वरूप का सच्चा ज्ञान होने से, शांति की शीतल धारा प्रवाहित होती है, जिसके तट पर असंतोष की ज्वाला जलती हुई नहीं रह सकती।
सच्चा संतोष उपलब्ध होे पर उसकी बाह्य आवश्यकताएँ बहुत ही थोड़ी रह जाती हैं और जब थोड़ा चाहने वाले को बहुत मिलता है, तो उसे बड़ा आनन्द प्राप्त होता है।
-अखण्ड ज्योति
मार्च ४१
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