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ग़ज़ल कार्यशाला।Ghazal Karyashala।Vijay Swarankar Ji।How to write Ghazal।मात्रा गणना।
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पार्ट 1- मात्रा गणना
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Notes विकिपीडिया से साभार
छंदबद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है। मात्राभार दो प्रकार का होता है- वर्णिक भार और वाचिक भार। वर्णिक भार में प्रत्येक वर्ण का भार अलग-अलग यथावत लिया जाता है जैसे- विकल का वर्णिक भार = 111 या ललल जबकि वाचिक भार में उच्चारण के अनुरूप वर्णों को मिलाकर भार की गणना की जाती है जैसे विकल का उच्चारण वि कल है, विक ल नहीं, इसलिए विकल का वाचिक भार है - 12 या लगा। वर्णिक भार की गणना करने के लिए कुछ निश्चित नियम हैं।
वर्णिक भार की गणना
(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा 1 होती है जिसे लघु कहते हैं, जैसे - अ, इ, उ, ऋ की मात्रा 1 है। लघु को 1 या । या ल से व्यक्त किया जाता है।
(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा 2 होती है जिसे गुरु कहते हैं, जैसे-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा 2 है। गुरु को 2 या S या गा से व्यक्त किया जाता है।
(3) व्यंजनों की मात्रा 1 होती है , जैसे -क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न / प,फ,ब,भ,म /य,र,ल,व,श,ष,स,ह।
वास्तव में व्यंजन का उच्चारण स्वर के साथ ही संभव है, इसलिए उसी रूप में यहाँ लिखा गया है। अन्यथा क्, ख्, ग् … आदि को व्यंजन कहते हैं, इनमें अकार मिलाने से क, ख, ग ... आदि बनते हैं जो उच्चारण योग्य होते हैं।
(4) व्यंजन में ह्रस्व इ, उ, ऋ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 1 ही रहता है।
(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ, ई, ए, ऐ, ओ, औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार 2 हो जाता है।
(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे - रँग = 11, चाँद = 21, माँ = 2, आँगन = 211, गाँव = 21
(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार 2 हो जाता है, जैसे- रंग = 21, अंक = 21, कंचन = 211, घंटा = 22, पतंगा = 122
(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है, जैसे - नहीं = 12, भींच = 21, छींक = 21,
कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार यही मानते हैं।
(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार 1 (लघु) होता है, जैसे - स्वर = 11, प्रभा = 12, श्रम = 11, च्यवन = 111
(10) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार 1 (लघु) ही रहता है, जैसे- प्रिया = 12, क्रिया = 12, द्रुम = 11, च्युत = 11, श्रुति = 11, स्मित = 11
(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे - भ्राता = 22, श्याम = 21, स्नेह = 21, स्त्री = 2, स्थान = 21
(12) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार 2 (गुरु) हो जाता है, जैसे - नम्र = 21, सत्य = 21, विख्यात = 221
(13) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पड़ता है, जैसे- हास्य = 21, आत्मा = 22, सौम्या = 22, शाश्वत = 211, भास्कर = 211
(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (12) के कुछ अपवाद भी हैं, जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है, अशुद्ध उच्चारण नहीं।
जैसे- तुम्हें = 12, तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे = 122, जिन्हें = 12, जिन्होंने = 122, कुम्हार = 122, कन्हैया = 122, मल्हार = 121, कुल्हाड़ी = 122, इनमें संयुक्ताक्षर से पहले वाला लघु वर्ण लघु ही बना रहता है।
वाचिक भार की गणना
वाचिक भार की गणना करने में ‘उच्चारण के अनुरूप’ दो लघु वर्णों को मिलाकर एक गुरु मान लिया जाता है। उदहरणार्थ निम्न शब्दों के वाचिक भार और वर्णिक भार का अंतर दृष्टव्य है -
उदाहरण वाचिक भार वर्णिक भार
कल, दिन, तुम, यदि आदि 2 / गा 11 / लल
अमर, विकल आदि 12 / लगा 111 / ललल
उपवन, मघुकर आदि 22 / गागा 1111 / लललल
नीरज, औषधि आदि 22 / गागा 211 / गालल
चलिए, सुविधा आदि 22 / गागा 112 / ललगा
आइए, माधुरी आदि 212 / गालगा 212 / गालगा
सुपरिचित, अविकसित आदि 122 (212 नहीं) 11111 / ललललल
मनचली, किरकिरी आदि 212 (122 नहीं) 1112 / लललगा
असुविधा, सरसता आदि 122 (212 नहीं) 1112 / लललगा
अभ्यास ग़ज़ल के अनुसार
चल 2
चला 12
चाल 21
चलन 12
चलना 22
प्यार 21 प्या/र
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