बाथू मंदिर, स्थानीय स्तर पर बाथू की लड़ी, हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जनपद में मंदिरों का एक गुच्छ (समूह) है।[1] यह मंदिर 1970 में पोंग बाँध (Pong dam) निर्माण के कारण बने जलाशय महाराणा प्रताप सागर में जलमग्न हैं। मंदिर-समूह तक केवल मई-जून में ही पहुँच सकते हैं, जब जल-स्तर घटता है। मंदिर-समूह तक धमेटा और नागराता सुरिया से नाव द्वारा एवं ज्वाली से सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है।
आम स्थानीय मान्यता के अनुसार, इसका निर्माण स्थानीय राजा ने करवाया था जो इस क्षेत्र पर शासन करते थे। मंदिरों की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियाँ लोककथाओं में प्रसिद्ध हैं । अन्य मान्यताओं के अनुसार मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था । [2] लोककथा महाभारत के समय की एक कहानी बताती है जब पांडवों ने झील के दूसरी ओर स्थित अखंड मसरूर रॉक मंदिरों में स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी बनाने का प्रयास किया था, लेकिन इंदिरा ने हस्तक्षेप किया। लेकिन, 'बाथू की लड़ी' मंदिर में 'स्वर्ग की सीढ़ी' का सफलतापूर्वक निर्माण किया गया, जहाँ आज भी वह सीढ़ी मौजूद है, लेकिन जनता के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के लिए इसे पत्थरों से अवरुद्ध कर दिया गया है। केंद्रीय मंदिर भगवान शिव को समर्पित है । जलमग्न 'बाथू की लड़ी' मंदिरों में सर्दियों में पानी कम होने पर दर्शन किए जा सकते हैं। [3]
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