पूरा वीडियो: पशुहत्या धर्म है, तो अधर्म क्या? || आचार्य प्रशांत (2022)
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वीडियो जानकारी: 09.07.22, बातचीत सत्र, ऋषिकेश
प्रसंग:
~ अपने भीतर के पशु को कैसे मारे?
~ पशुबलि क्यों होता है?
~ पशुबलि को कैसे रोकें?
~ पशुबलि का विरोध करना ज़रूरी क्यों है?
~ पशुबलि की प्रथा क्या है? और यह बंद कैसे हो?
~ कुछ देवी मंदिरों में पशुबलि क्यों दी जाती है?
~ क्या पशुबलि देने से कोई आध्यात्मिक लाभ होता है?
~ मांसाहार के दुष्परिणाम क्या हैं?
~ शाकाहारी कैसे बने?
कामक्रोधलोभादयः पशवः।
काम, क्रोध, लोभ, मद आदि यही सब पशु हैं।
~ उपनिषद्
अश्वमेध महायज्ञकथा तद्राज्ञा। ब्रह्मचर्य माचरन्ति।
सर्वेषां पूर्वोक्तब्रह्मयज्ञक्रमं मुक्ति क्रममिति॥
अश्वमेध बड़ा यज्ञ है, किंतु उसके अभ्यासी वास्तव में ब्रह्मचर्य ही साधते हैं। इस ब्रह्मचर्यात्मक यज्ञ का सिलसिला ही मुक्ति का उत्तरोत्तर कारण बनता है।
~ पाशुपतब्रह्मोपनिषद्
अग्निः पशुरासीत्तेनायजन्त॥
अग्नि पशु था, इसी के द्वारा यज्ञ किया।
~ यजुर्वेद
पशुश्चेन्निहतः स्वर्गं ज्योतिष्टोमे गमिष्यति।
स्वपिता यजमानेन तत्र कस्मान्न हन्यते॥
यदि धर्म कार्य में मारा हुआ पशु स्वर्ग को जाता है, तो भाई तुम अपने पिता को ही यज्ञ में क्यों नहीं मार देते, ताकि तुम्हारे पिता को सीधे ही स्वर्ग मिल जाए?
~ चार्वाक सम्प्रदाय के ग्रंथ से
मा नो गोषु मा नो अश्वेष रीरिष:।
हमारी गायों और घोड़ों को मत मार।
~ ऋग्वेद १/११४/८
इममूर्णायुं वरुणस्य नाभिं त्वचं पशूनां द्विपदां चतुष्पदाम् ।
त्वष्टुः प्रजानां प्रथमं जनित्रम् अग्ने मा हिंसी: परमे व्योमन् ।
बकरी को, ऊँट को, जो दो पाँव वाले हैं पक्षी, चार पाँव वाले पशु, इनमें से किसी को भी मत मारो, बिलकुल भी मत मारो।
~ यजुर्वेद १३/५०
न कि देवा इनीमसि न क्या योपयामसि। मन्त्रश्रुत्यं चरामसि।।
हे देवो! हम हिंसा नहीं करते और न ही हम हिंसा वाला कोई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
~ सामवेद २/७/२
घोड़े की हिंसा मत कर, भेड़ की हिंसा मत कर
दो पैर वाले जीवों की हिंसा मत कर, गाय की हिंसा मत कर
बकरे की हिंसा मत कर, अपितु रक्षा कर रक्षा कर।
किसी की हिंसा मत करो, हिंसा को बिल्कुल छोड़ दो।
~ यजुर्वेद
सुरां मत्स्यान्मधु मांसमासवं कृसरौदनम् ।
धूर्तैः प्रवर्तितं ह्येतन्नैतद्वेदेषु कल्पितम् ॥ ९ ॥
मानान्मोहाच्च लोभाच्च लौल्यमेतत्प्रकल्पितम् ।
विष्णुमेवाभिजानन्ति सर्वयज्ञेषु ब्राह्मणाः ॥ १० ॥
पायसैः सुमनोभिश्च तस्यापि यजनं स्मृतम् ।
यज्ञियाश्चैव ये वृक्षा वेदेषु परिकल्पिताः ॥ ११ ॥
सुरा, मछली, मदिरा, माँस आदि यह सारा व्यवहार धूर्तों का चलाया हुआ है। ऐसे व्यवहार का वेदों में कोई प्रमाण नहीं है। मान, मोह, लोभ और जिव्हा लोलुपता से यह माँस, मदिरा, मछली का व्यापार चल रहा है। इस व्यापार का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है।
~ महाभारत शांतिपर्व, अध्याय २६५
श्रुतिर्वदति विश्वस्य जनजीवहितं सदा ।
कस्यापि द्रोहजननं न वक्ति प्रभु तत्परा ॥
श्रुति (वेद-वेदांत) माँ की तरह सब प्राणियों की भलाई का उपदेश करती है, वह किसी जाति या प्राणी के वध की आज्ञा नहीं देती।
~ नारद पंचरात्र
संगीत: मिलिंद दाते
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Негізгі бет बलि और यज्ञ क्या होता है? || आचार्य प्रशांत (2022)
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