Күн бұрынबयाँ करना भी गर चाहे,रूह ये कांप जाती है,जीतेजी अंगों के टुकड़े,सोंचकर जान जाती है😥||अक्षय जैन Рет қаралды 359Akshay jain 1 1 Жүктеу
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