'सुनहु साधक प्यारे'
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा
स्वरचित काव्य रचना की व्याख्या।
दिनांक 17 नवम्बर, 2002 (मनगढ़).
श्री महाराज जी के शब्दों में,
"देखो! जब संसार में इतनी आसक्ति हो गई, जहाँ चप्पल-जूते मिले, हर एक से, तो भगवान के यहाँ तो आनंद है। अगर उधर चल पड़ेगा, तो भगवान तो स्वार्थी हैं नहीं। वो तो देने वाले हैं। और संसार तो लेने वाला है। जब लेने वाले स्वार्थी लोगों में इतनी मार खा करके भी हमारे मन का अटैचमेंट है, हो रहा है, अनंत सन्त आये, भगवान के अवतार आये, सबने समझाया हमने सिर भी हिलाया उनके सामने हाँ हाँ समझ गये, लेकिन अटैचमेंट नहीं छोड़ा। तो जब दुःख से इतना अटैचमेंट हो गया उसका तो आनंद सिन्धु से अगर ये चिंतन बढ़ावे बार बार रिवीज़न करे, तू ही हमारा है, तू ही हमारा है, तो उनमें अटैचमेंट हो जाये, उसमें आनंद भी मिलेगा। वहाँ तो आनंद मिलेगा, ये फ़ीलिंग आयेगी।
भक्ति में साधनावस्था में भी सुख, सिद्धावस्था में भी सुख।"
भगवान के सन्मुख होने का अभिप्राय क्या है और उसका प्रैक्टिकल स्वरूप कैसा है?
जानने के लिये यह वीडियो अंत तक देखिये।
Негізгі бет Музыка भगवान के सन्मुख होने का क्या मतलब है?
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