#भगवानदासमोरवाल का उपन्यास:शकुंतिका
Novel by Bhagwandass Morwal
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#स्वर-सीमासिंह
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@Sahitya-Nidhi
भगवानदास मोरवाल: एक परिचय
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देश की राजधानी दिल्ली और राजस्थान व उत्तर प्रदेश के ब्रज से सटे हरियाणा के काला पानी कहे जानेवाले मेवात के जिला नूंह के क़स्बे नगीना में 23 जनवरी, 1960 को जन्मे ग्रामीण जीवन के आधुनिक चितेरे, हिंदी क्षेत्र की जनपदीय गंध और उसकी लोक-संस्कृति में रचे-बसे भगवानदास मोरवाल ने अपनी अदम्य व जिजिविषापूर्ण कथा-यात्रा में एक अलग पहचान बनाई है l हमेशा अछूते विषयों को केंद्र में रखकर हिंदी कथा-साहित्य में अपनी अलग और देशज छवि बनाए रखनेवाले, तथा अपने लेखन के माध्यम से लोक-मानस की अनुकृतियों को उकेरने वाले इस कथाकार का समकालीन हिंदी-कथा साहित्य में एक विशिष्ठ स्थान है l निराडंबर, बिना बौद्धिकता का आवरण चढ़ाए इन्होंने अपनी रचनाओं में लोकजीवन की अनेकानेक छवियों, उसकी त्रासदियों, विडंबनाओं और उसके श्रम-सौंदर्य के यादगार चित्र उकेरे हैं l सामाजिक उत्तरदायित्व और मानवीय प्रतिबद्धता भगवानदास मोरवाल के रचना-संसार में सुस्पष्ट नज़र आती है l प्रचलित विमर्शों के बरअक्स मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों, सर्वसत्ता व लोकविरोधी तत्वों, तथा आम आदमी की प्रबल अदम्यता और जिजीविषा की पड़ताल करनेवाले इस कथाकार ने काला पहाड़, बाबल तेरा देस में, रेत, नरक मसीहा, हलाला, सुर बंजारन, वंचना, शकुंतिका, ख़ानज़ादा, मोक्षवन और काँस जैसे ग्यारह महत्त्वपूर्ण उपन्यासों के माध्यम से न केवल हिंदी कथा-साहित्य को समृद्ध किया है, अपितु अपने लेखन के माध्यम से ये वंचित, उपेक्षित और हाशिए के समाजों का प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं । संश्लिष्ट व बहुस्तरीय भारतीय जन-जीवन की अन्तवर्ती धारों के उद्गम तक पहुँचने का संकल्प इन्हें हमारे समय और समाज में महत्त्वपूर्ण बनाता है l
भगवानदास मोरवाल की शब्दयात्रा उनके बहुआयामी सरोकारों को सुपरिभाषित करती है l आप लेखन में अनेक प्रयोग करते हुए अपनी रचनाओं से पाठकीय संसार में एक सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुके हैं l इन सक्रियताओं के सार्थक प्रभाव आपकी रचनाशीलता पर परिलक्षित होते हैं l
भगवानदास मोरवाल ने अपने लेखन के माध्यम से अपनी रचनात्मक उपस्थिति प्रमाणित की है l क्योंकि इनकी रचनाएँ सर्वग्रासी सत्ता का प्रतिवाद तो करती ही हैं, वे नई नैतिक सम्भावनाओं के लिए भी पाठक में उत्सुकता पैदा करती हैं l कहना होगा कि आप विभिन्न कारणों से एकाकी होते जा रहे मनुष्य के अव्यक्त को शब्दबद्ध करने में सफल हुए हैं l इनकी रचनाएँ परम्परा, विकास, लोकतन्त्र, लोकशील एवं जन जिजीविषा को वाणी प्रदान करती हैं l इनके उपन्यासों की अन्तर्वस्तु के साहित्यिक एवं समाजशास्त्रीय महत्त्व को बहुश: प्रशंसित किया गया है l
भगवानदास मोरवाल हिन्दी की औपन्यासिक रचनाशीलता के सर्वोत्तम प्रतिनिधियों में से एक हैं l भूमंडलीकरण के भयाक्रांत करते कोलाहल के मध्य उन्होंने स्थानीयता एवं निजता का निनाद चिह्नित किया है l भगवानदास मोरवाल उन वैचारिक आग्रहों और सामाजिक हठों का अतिक्रमण करनेवाले लेखक हैं, जो धर्म तथा समाज के संबंधों को वैज्ञानिक संयम के साथ परखने नहीं देते l पाठकों व आलोचकों में भगवानदास मोरवाल की आत्मीय स्वीकृति इस तथ्य को रेखांकित करती है l आपकी कुछ रचनाओं और कृतियों का अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है l
पाठ्यक्रम में शामिल रचनाएँ :
1) 'शकुंतिका' उपन्यास
बी.ए. (प्रथम वर्ष) मुंबई विश्वविद्यालय
2) 'शकुंतिका' उपन्यास
बी.ए. तृतीय वर्ष, कवयित्री बहिनाबाई चौधरी उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगाँव, महाराष्ट्र
3) 'शकुंतिका' उपन्यास
बी.ए. द्वितीय वर्ष, प्रताप कॉलेज (स्वायत्त), अमलनेर, जलगाँव, महाराष्ट्र
4) 'विशेष लेखक’
बी.ए. तृतीय वर्ष (छठे सेमिस्टर) अहिल्यादेवी होल्कर सोलापूर विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र
(इसके अंतर्गत ‘शकुंतिका’ एवं ’10 प्रतिनिधि कहानियाँ’ को शामिल किया गया है)
5) 'विशेष रचनाकार'
एम.ए. द्वितीय वर्ष, सेमिस्टर ll
स्वामी रामतीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय
नांदेड़, महाराष्ट्र
6) ‘विशेष लेखक’
एम.ए. (प्रथम वर्ष) प्रथम सेमिस्टर में
शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
(इसके अंतर्गत ‘काला पहाड़, ‘वंचना’,‘शकुंतिका’ एवं ’10 प्रतिनिधि कहानियाँ’ को शामिल किया गया है)
7) 'शकुंतिका' उपन्यास
दो वर्षीय बी.ए. (प्रथम वर्ष) सेमिस्टर II
मेंगलोर विश्वविद्यालय, कर्नाटक
8) संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय, अमरावती के बी.कॉम. प्रथम वर्ष, हिन्दी (अनिवार्य) के गद्य खण्ड के अन्तर्गत कहानी ‘लक्ष्मण रेखा’
9) 'काला पहाड़' उपन्यास
एम.ए. (हिंदी)
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
10) 'मोक्षवन' उपन्यास
एम.ए. (हिंदी) प्रथम वर्ष
डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
11) 'शकुन्तिका' उपन्यास
एम.ए. (हिंदी) द्वितीय वर्ष
संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय, अमरावती, महाराष्ट्र
12) 'रेत' उपन्यास
एम.ए. (हिंदी)
काशी विश्वविद्यालय,
तलवंडी साबो, पंजाब
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