स्वार्थ पूर्ति पर टिका है संसार का प्रेम!
इस वीडियो में स्वामी मुकुन्दानन्द जी हमें संसार के सच्चे स्वरूप के बारे में बोध करवाते हैं। वह शास्त्रों के आधार पर कहते हैं कि संसार में अपने स्वार्थ के अनुसार जीव का प्यार बढ़ता और घटता है। जिसको देखा जाए तो हम अपने परिवार, मित्रगण और रिश्तेदारों के साथ अपने व्यवहार में रोज़ अनुभव करते हैं। कभी वह हमें बड़े प्रिय लगते हैं, कभी नॉर्मल तो कभी बहुत बुरे। इसी के आधार पर हमारा प्रेम घटता बढ़ता रहता है। हमारे वेद कहते हैं कि यह तो शरीर के रिश्तेदार हैं, किन्तु आप तो नित्य आत्मा हैं। आत्मा का संबंध केवल एक तत्व से है। इसीलिए, हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं कि आप मूलभूत प्रश्नों पर गहनता से विचार कीजिये कि आप कौन हैं, इस संसार में क्यों आयें और क्या कर रहे हैं?
संसार का वास्तविक स्वरूप क्या है?
आत्मा का रिश्ता किस तत्व से है?
स्वार्थ की हानि पर क्या होता है?
राग और द्वेष कैसे समाप्त करें?
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✨ स्वामी मुकुंदानंद परिचय -
स्वामी मुकुंदानंद एक प्रसिद्ध भक्ति योग संत, मन नियंत्रण के प्रवक्ता, आध्यात्मिक एवं योग शिक्षक और जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के वरिष्ठ शिष्य हैं। स्वामीजी एक अभूतपूर्व योग प्रणाली 'जगदगुरु कृपालु जी योग ' (JKYog) के संस्थापक है। एक इंजीनियर (आईआईटी) और प्रबंधन (आईआईएम) स्नातक के रूप में स्वामीजी का प्रशिक्षण उन बुद्धिजीवियों को बहुत आकर्षित करता है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आध्यात्मिकता सीखना चाहते हैं। ईश्वर के विषय में सच्चे दर्शन को प्रस्तुत करने की उनकी अनूठी और उच्च पद्धतिगत प्रणाली आज की दुनिया में अत्यंत दुर्लभ है। उनकी उपस्थिति भगवान् और उन सभी आत्माओं के प्रति प्रेम का संचार करती है जो मार्गदर्शन के लिए उनसे संपर्क करते हैं।
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Негізгі бет Bhagavad Gita Part 27 (Shlok 2.41) | संसार में कौन अपना और कौन पराया? Sansaar ka Swaroop
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