इस डॉक्यूमेंट्री में दिखाए गए स्थलों के नाम निम्नवत है-
लम्भुआ रेलवे स्टेशन (Lambhua Raiway Station)
लम्भुआ बाजार, सुल्तानपुर (Lambhua Market Sultanpur)
चांदा बाजार, सुल्तानपुर (Chanda Bazar Sultanpur)
शिवधाम इको पर्यटन स्थल, शाहपुर, सुल्तानपुर (Shiv Dham Tourist Place Sultanpur)
गोमती नदी, सुल्तानपुर (Gomti River Sultanpur)
कादीपुर, सुल्तानपुर (Kadipur Sultanpur)
सूरापुर, सुल्तानपुर (Surapur Sultanpur)
प्रतापगढ़ घंटा घर (Pratapgarh Ghantaghar Night)
चिलबिला चौराहा (Chilbila Chauraha Night)
पट्टी रोड (Patti Road Night)
ढकवा बाजार (Dhakwa Bazar Pratapgarh)
इब्राहिमपुर घाट (Ibrahimpur Ghat)
प्रतापगढ़-सुल्तानपुर नहर (Pratapgarh-Sultanpur canal)
देशी गुड़ बनाने की फैक्ट्री (Desi Gud small factory)
संजीवनी लाने चले पवनसुत,
नभ में भरी उड़ान,
लक्ष्य प्राप्ति से किंचित पहले,
राम नाम से भटके ध्यान,
मकड़ कुण्ड में लेकर डुबकी
लिए कालनेमि के प्रान,
सुल्तानपुर स्टेशन से लगभग 23 किलोमीटर दूर लम्भुआ का स्टेशन।
लंभुआ बाजार से लगभग 12 किलोमीटर दूर चांदा चौराहा
चांदा से कादीपुर रोड पर चलते हुए लगभग 6.5 किलोमीटर बाद गोमती नदी के किनारे स्थित शिव धाम इको पर्यटन स्थल।
यहां से लगभग 6.50 किलोमीटर बाद कादीपुर की बाजार।
कादीपुर से 8.50किलोमीटर दूर सूरापुर चौराहा
जहां से मात्र 2 किलोमीटर दूर स्थित है बिजेथुआ नामक गांव में हनुमान जी का प्राचीन मंदिर।
अगर आप सड़क के द्वारा सुल्तानपुर से कादीपुर होते हुए सीधे बिजेथुआ आना चाहे तो मात्र 50 किलोमीटर का सफ़र तय करके यहाँ पहुँच सकते हैं।
और अगर रामगंज बाजार से आना चाहे तो नहर वाली सड़क पकड़ कर हर-भरे खेतों, पानी से लबालब भरी नहर को निहारते हुए यहाँ आ सकते हैं।
लेकिन अगर प्रतापगढ़ से बिजेथुआ आने का विचार बना रहे हैं तो चिलबिला चौराहे से पट्टी वाली सड़क से होते हुए आप सीधे पहुंच जाएंगे ढकवा मात्र 45 किलोमीटर में
ढकवा बाजार से इब्राहिमपुर घाट से होते हुए साढ़े 15 किलोमीटर का सफर तय करके आप सीधे पहुंच जाते हैं बिजेथुआ के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर। इस रास्ते से गुजरते हुए आपके नथुनों से एक जानी पहचानी गंध टकराती है। जब आप पास जाते हैं तो पता चलता है की यह गन्ने से देसी गुड़ बनाने की छोटी सी फैक्ट्री है इसे देखकर कुछ पलों के लिए बचपन की कुछ यादें ताजा हो जाती हैं।
रामायण में माता सीता को लंका से वापस ले आने के लिए जब राम और रावण के बीच में युद्ध चल रहा था उस वक्त मेघनाथ ने अपनी राक्षसी माया से अमोघ शक्ति का प्रहार लक्ष्मण पर कर दिया। परिणाम स्वरुप लक्ष्मण मूर्छित होकर नीचे गिर पड़े। यह देख कर संपूर्ण सेना में हाहाकार मच गया तब विभीषण के आदेश पर लंका से सुषेण वैद्य को बुलाया गया। वैद्य के अनुसार मात्र संजीवनी बूटी का लेप ही लक्ष्मण के प्राण बचा सकता था। यह सुनकर हनुमान जी संजीवनी बूटी लाने के लिए निकल पड़े।
रास्ते में बिजेथुआ नामक स्थान पर राम-राम का नाम सुनकर वह रुक गए। यह रावण द्वारा भेजा गया एक मायावी राक्षस था जिसका नाम था कालनेमी। जो साधु के भेष में हनुमान जी को राम भक्त होने का विश्वास दिलाकर उन्हें सर्व मनोकामना पूर्ण मकर कुंड में स्नान करने का सुझाव देता है। इस कुंड में स्नान के समय कालनेमि मगरमच्छ का रूप धारण कर हनुमान जी को खाने का प्रयास करता है। परंतु महाबलशाली महापराक्रमी पवन देव के पुत्र राम भक्त हनुमान ने कालनेमि के दोनों जबड़ों को फाड़ कर उसका वध कर दिया। तत्पश्चात वह संजीवनी पर्वत को उखाड़कर ले आए और इस तरह से लक्ष्मण के शरीर में पुन: प्राण वायु का संचार हुआ।
आज यह जगह बिजेथुआ महावीरन के नाम से विख्यात है। यहाँ हर मंगलवार को विराट मेला लगता है,
जहां दूर-दूर से श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन को आते हैं।
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बोलो पवन पुत्र हनुमान की जय!
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