शिवाजी विश्वविद्यालय कोल्हापुर के बीए द्वितीय वर्ष के सत्र 3 के लिए पाठ्यक्रम में दस्ताने कबूतर यह कहानी लगाई गई है। कहानी आज के मानव समाज के लिए बहुत ही उपयोगी है। समाज किस तरह से बदलता जा रहा है? किस तरह से यंत्रवत बनता जा रहा है? किस तरह से वह एक दूसरे की मदद नहीं करना चाहता, सिर्फ और सिर्फ अपने ही फिक्र में दिन और रात मेहनत करता रहता है। आदि बातों की चर्चा कबूतरों की जुबानी बताई गई है। कहानी का फलक अत्यंत व्यापक है। इस वीडियो में इस कहानी के पहले प्रसंग को पढ़ा गया है। कहानी सभी के लिए उपयुक्त है।
Негізгі бет दास्ताने कबूतर
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