प्रिय प्राकृतिक किसान मित्रों, यह हमारी संस्था द्वारा पोस्ट की गई पहली वीडियो है। विगत ढाई वर्षों से यह संस्था प्राकृतिक कृषि पर कार्य कर रही है।
यह उड़द की फसल है, इसे गेहूं की फसल पर फैंका गया था और गेहु को धान की फसल पर फैंका गया था। ये कृषि करने की जंगली/प्राकृतिक विधि है। इस विधि में प्रकृति में वनस्पतियों के बढ़ने और पैदा होने की घटना का नकल किया जाता है।
इस विधि में किसी प्रकार की जुताई नही की जाती बल्कि एक के बाद एक अलग अलग फसल के बीजों को जमीन पर बिखेर दिया जाता है, ऐसा करते वक़्त ध्यान दिया जाता है कि जमीन पर पुराने फसल के अवशेष छोड़ दिए जाएं। ये फसलीय अवशेष ही मिट्टी और जीवाणुओं का भोजन बनते हैं। यह कृषि करने की प्राचीन एवं जंगली विधि है जो समय के साथ लुप्त हो गई थी। इस विधि की खास बात यह है कि इसमें जुताई की लागत बच जाती है, मिट्टी में किसी किस्म की छेड़खानी नही होने से मिट्टी की प्राकृतिक संरचना बनी रहती है, विभिन्न सूक्ष्म जीव जैसे केचवे, कीड़े, चींटी आदि सक्रिय हो जाते हैं जो मिट्टी को पोरस बनाने का कार्य करते हैं। मिट्टी उर्वरा और पोरस बन जाने से वर्षा का पानी भूमिगत जा पाता है।
इस संस्था का नाम प्रकृति जैविक उत्पादक समिति है, जो छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिला के दल्ली राजहरा नामक छेत्र में स्थित है।
Негізгі бет D02-जंगली खेती- उड़द की फसल (No till farming-Blackgram farming)
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