दगड्याओं... जुन्याळी उत्तराखंड में आपका एक बार फिर से स्वागत. डांडा नागरजा मंदिर पौड़ी गढ़वाळ के कोट ब्लॉक में बनेळस्यूं और कंडवाळस्यूं पट्टी की सीमा में पड़ता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने नाग के रूप में लेटकर इस पहाड़ी की परिक्रमा की थी. इसीलिए इस स्थान का नाम डांडा नागराजा पड़ा. यहां के पुजारी सिल्सू गाँव के देशवाळ लोग हैं. पुजारी जी के अनुसार इस मंदिर का अस्तित्व करीब डेढ़ सौ साल पुराना है. मध्य हिमालय में नागरजा लौकिक देवता के रूप में प्रसिद्ध हैं. यहां से अविरल गंगा दर्शन भी होते हैं. समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई 5000 फ़ीट से अधिक है. यहां से पर्वतराज हिमालय का विहंगम दृश्य नजर आता है. यहां चौखम्बा और केदारनाथ की चोटी भी दृष्टिगोचर होती है.
इस मंदिर के बारे में एक दन्त कथा खूब प्रचलित है. जो सरकारी शिलापट्ट पर भी उल्लिखित है कि इस मंदिर के पास ही लसेरा गाँव है. वहां गुमाळ जाति के लोग रहते थे. लसेरा के सरपंच के घर एक गाय थी जो अन्य गायों के साथ मंदिर के आसपास चरने के लिए आती थी. अचानक गाय ने घर पर दूध देना बंद कर दिया. जब सरपंच को शक हुआ तो उसने गाय की निगरानी शुरू कर दी. एक दिन उसने देखा कि उसकी गाय मंदिर के पास एक पत्थर पर अपना दूध गिरा देती है. तभी एक नाग आकर उस दूध को पी जाता है और लुप्त हो जाता है. सरपंच ने गुस्से में आकर उस पत्थर को तोड़ दिया और गाय को घर में खूंटे से बाँध दिया. कहते हैं परिणामस्वरूप गुमाळ जाति का इस गाँव से पूर्ण विस्थापन हो गया. उसके बाद डांडा नागरजा और भी प्रसिद्ध हो गया. देश के कोने-कोने से लोग दर्शनों के लिए आने लगे.
यहाँ हर साल बैसाख 2 गते भव्य मेला लगता है. मई जून और नवम्बर दिस्मबर में आप यहां आ सकते हैं. ऋषिकेश से मात्र 95 और पौड़ी से इसकी दूरी 35 किमी है. कोटद्वार से वाया सतपुली, बाड्यूं, बहेड़ाखाल होते हुए लगभग 100 किमी है. रास्ते में मनोरम दृश्य आपकी प्रतीक्षा करते महसूस होते हैं. यहां ठहरने के लिए धर्मशाला है और खाने की भी अच्छी व्यवस्था है.
दगड्याओं... इसीलिए उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है यहां अनगिनत पौराणिक मंदिर हैं. मंदिरों की श्रंखला में जुन्याळी उत्तराखंड की ये स्टोरी आपको कैसी लगी? कमेंट में जरूर लिखें. इस वीडियो को शेयर भी करें. ताकि लोग डांडा नागरजा के दर्शन कर सकें. अगर आपने अभी तक हमारा चैनल जुन्याळी उत्तराखंड सब्सक्राइब नहीं किया तो तुरंत करें. धन्यवाद
दगड्याओं = दोस्तों
2 गलतियो के लिए माफी:
1. बैसाखी के दिन नहीं बैसाख 2 गते मेला लगता है
2. दूरी ऋषिकेश से 25 नहीं 95 किमी है
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