दरगाह हज़रत ख्वाजा खानून साहब ग्वालियर | Dargah@AjmerDargah
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Dargah History :-
Gwalior News: ग्वालियर में ख्वाजा कानून साहब की 500 साल पुरानी दरगाह है. इस दरगाह के बारे में मान्यता है कि देश में जो स्थान अजमेर शरीफ का है वही स्थान मध्य प्रदेश में ख्वाजा कानून साहब का माना जाता है. सूफी जगत में इनका बहुत नाम है.
ग्वालियर: मध्य प्रदेश के शहर ग्वालियर में सूफी संतों का काफी समय गुजरा है. यहां पर बड़े-बड़े सूफी संतों ने अपनी रहमों करम बरसाया है. इन्हीं में से एक है हजरत ख्वाजा शहीदुद्दीन खानून साहब, जिन्हें देशभर में ख्वाजा खानून के नाम से जाना जाता है. ख्वाजा खानून साहब की दरगाह लगभग 500 साल पुरानी है और इस दरगाह के तार सीधे अजमेर से जुड़े हैं.
ख्वाजा खानून दरगाह पर SAKIB JI ने बताया कि ख्वाजा खानून साहब का सूफी संतों में बेहद नाम है और अंचल में उनका वही स्थान है जो देश में अजमेर शरीफ का है. इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब अजमेर शरीफ पर चादर चढ़ाई जाती है तो देशभर से चादरें अजमेर जाती हैं. लेकिन जब ख्वाजा खानून साहब पर ग्वालियर में उर्स के दिन चादर चढ़ानी होती है तो उसके लिए चादर अजमेर शरीफ से आती है.
…तभी मानी जाएगी यात्रा पूरी
आगे बताया कि इस दरगाह की मान्यता है कि यदि आप किन्हीं परिस्थितियों के चलते अजमेर शरीफ के दरबार में नहीं पहुंच पा रहे हैं तो आप ग्वालियर के ख्वाजा खानून दरगाह पर आकर माथा टेक दीजिए, आपकी हाजिरी अजमेर शरीफ में कबूल कर ली जाएगी. जो लोग अजमेर जाते हैं, वे पहले यहां पर आकर अपनी हाजिरी लगाते हैं. इसके बाद अजमेर शरीफ जाकर बाबा के दरबार में हाजिर लगती है. तभी उनकी यात्रा पूरी मानी जाती है.
नागौर में हुआ था जन्म
SAKIB JI ने बताया कि ख्वाजा खानून साहब का जन्म नागौर में हुआ था, जहां से वह ग्वालियर आए थे. कुछ समय वे सेना में भी रहे थे, जहां उनमें अल्लाह की अलख जगी और अल्लाह की खिदमत के लिए दुनियादारी से अलग हो गए.
चंदेरी में तपस्या कर लिया था गुरु से ज्ञान
जब अल्लाह की खिदमत का सिलसिला शुरू हुआ तो वे चंदेरी पहुंचे, जहां उन्होंने काफी समय तक साधना की और फिर हजरत इस्माइल शाह नागौरी जो कि बेहद अव्वल दर्जे के सूफी संत थे, जिन्हे ख्वाजा कानून ने अपना गुरु बनाया और ज्ञान प्राप्त किया. इसके बाद गुरु के आदेश पर अपनी यात्रा पर निकल गए और फिर ओरछा पहुंचे, जहां आज भी इनका चिल्ला बना हुआ है. तपस्या पूरी होने के बाद इन्हें अल्लाह का पैगाम मिला अब आप ग्वालियर जाइए और वहां सूफी संस्कृति का विस्तार कीजिए. ग्वालियर में जहां आज दरगाह है, वहां घना जंगल हुआ करता था. स्वर्णरेखा नदी का किनारा था. यही ख्वाजा खानून ने अपना स्थान बनाया. बताया जाता है कि इन्हीं के बाद ग्वालियर में मोहम्मद गौस साहब और बाबा कपूर जैसे सूफी संतों का आगमन हुआ, जिन्होंने ग्वालियर के इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी.
ख्वाजा खानून साहब से जिन्नात भी मांगते थे पनाह
राम बाबू कटारे ने बताया कि एक किस्सा है कि किले की तलहटी में तत्कालीन समय में एक बस्ती थी, जो आज भी है, लेकिन उस समय पर उस बस्ती को जिन्नातों की बस्ती कहा जाता था. वर्तमान में भी वहां एक मस्जिद है, जिसे जिन्नातों की मस्जिद कहा जाता है. उन्होंने बताया कि ख्वाजा खानून साहब के आने के बाद सभी जिन्नात बाबा साहब के यहां पनाह मांगते थे. बाबा साहब की साधना और तपस्या के आगे वे सभी नतमस्तक थे. बाबा जब भी जिस जिन्नात को हुक्म दिया करते थे, वह उसे पूरा किया करता था. हालांकि, बाबा ख्वाजा खानून के द्वारा कभी किसी प्रकार का तंत्र साधना आदि नहीं किया गया. बाबा केवल आध्यात्मिक साधना किया करते थे और उसी में अल्लाह की इबादत शामिल हुआ करती थी. उन्होंने बताया कि बाबा को सोए हुए 504 वर्ष हो चुके हैं. और इस वर्ष 505 उर्ष मनाया जाएगा. लेकिन बाबा की मुरीद सदैव से ही उनके यहां पर सजदे में आते रहे हैं.
40 दिन की हाजिरी से होती है मुरादें पूरी
SAKIB JI ने बताया कि बाबा ख्वाजा खानून साहब के यहां वैसे तो कभी भी अपनी मनोकामना मान सकते हैं और गुरुवार के दिन यहां मेला लगता है. लेकिन ऐसा मानना है कि लगभग 40 दिन रोजाना नियमित रूप से बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने से जो भी मन की इच्छा होती है. वह 40 दिन पूरे होने से पहले ही पूरी हो जाती है. इसके अलावा यदि आप 40 दिन नहीं कर पाते हैं. तो 5 गुरुवार की हाजिरी भी बाबा के दरबार में विशेष मानी जाती है.
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