Dattatreya Kavach In Hindi - दत्तात्रेय कवच हिंदी में | dattatreya kavach dattatreya vajra kavacham
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अर्थ- ऋषियों ने पूछा - व्यासजी महाराज ! आप कृपाकर यह बतलाएँ कि कलियुग में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि किस प्रकार से होगी तथा क्लेश, मुक्ति और अन्य सत्संकल्प आदि कार्य कैसे सिद्ध होंगे.
अर्थ- भगवान व्यास बोले - ऋषिगण ! आप सभी लोग सुनें. मैं विधिपूर्वक एक बार के पाठमात्र से भोग और मोक्ष आदि सभी को तत्काल सिद्ध करने वाला एक स्तोत्र बतलाता हूँ.
अर्थ- हिमालय पर्वत के ऊपर एक गौरीशिखर नाम का दिव्य श्रृंग (पहाड़) है, वह अनेक कल्पवृक्षों से सुशोभित रहता है, साथ ही महान रत्नों से सदा उद्भाषित होता रहता है. वहीं भगवान शिव और पार्वती जी के निवास के लिए एक सुवर्णमय मण्डप बना हुआ है. वहीं रत्नसिंहासन पर प्रसन्न मन से बैठे हुए मन्दस्मित ( हल्की मुस्कान) मुखकमल भगवान शंकर से भगवती पार्वती ने आदरपूर्वक इस प्रकार पूछा.
अर्थ- देवी पार्वती बोली - हे देवाधिदेव महादेव ! समस्त लोकों के कल्याण करने वाले भगवान शंकर ! आपसे मैंने अनेक प्रकार के मंत्र, यंत्र और तंत्र समुदायों को भली-भाँति सुना, अब मेरी इस भूमण्डल पर विचरण करने और उनके दृश्यों को देखने की विशेष इच्छा हो रही है.
अर्थ- पार्वती जी के इस कथन को सुनकर भगवान शंकर ने उनके हाथ को प्रसन्नतापूर्वक स्पर्श कर इस प्रस्ताव का अनुमोदन ( सहमति प्रकट ) करते हुए कहा कि ठीक है “मैं ऎसा ही करता हूँ”. मैं तुम्हारे साथ अपने वृषभ वाहन पर बैठकर भूमण्डल के दृश्यों के अवलोकन के लिए चल रहा हूँ. ऎसा कहकर भगवान शंखर पार्वती जी के साथ अपने वृषभ वाहन पर बैठकर उन्हें विभिन्न क्षेत्रों की शोभा दिखाते हुए भूमण्डल के दृश्यों को देखने के लिए निकल पड़े.
अर्थ- घूमते-घूमते वे लोग विन्ध्याचल पर्वत के अत्यन्त दुर्गम वन के एक भाग में पहुँचे. वहाँ उन्होंने फरसा लिए हुए एक भिल्ल को देखा, जो शिकार के लिए उस वन में घूम रहा था. उसका शरीर वज्र के समान कठोर था, वह विशाल नख एवं दाढ़ वाले एक बाघ को मारने में प्रवृत था. उसका चरित्र अत्यन्त विचित्र था और उसके शरीर में लेशमात्र भी श्रम एवं कान्ति के लक्षण नहीं दीख रहे थे तथा आनन्दपूर्वक निश्चिन्त खड़ा था.
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दत्तात्रेय कवच के फायदे / दत्तात्रेय कवच के लाभ
सभी प्रकार के विवादों में विजयी होता है.
सामान्य ज्वर, मिर्गी, कुष्ठ और उष्ण ज्वर आदि ताप भी नष्ट हो जाते हैं.
उपद्रव आदि निर्वृत्त हो जाते हैं और शान्ति हो जाती है.
जो व्यक्ति इस वज्रकवच का पाठ करता है वह भी परम सिद्ध दत्तात्रेय जी के समान ही समस्त गुणों से संपन्न हो जाता है.
जो व्यक्ति इस वज्रकवच का पाठ करता है वह चिरायु एवं योगियों में श्रेष्ठ होकर दत्तात्रेय भगवान की तरह सर्वत्र विचरण करता है.
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श्रीगणेशाय नम: । श्रीदत्तात्रेय नम: ।।
ऋषिय ऊचु:
कथं संकल्पसिद्धि: स्याद्वेदव्यास कलौ युगे ।
धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं किमुदाहृतम् ।।
व्यास उवाच
श्र्ण्वन्तु ऋषय: सर्वे शीघ्रं संकल्पसाधनम् ।
सकृदुच्चारमात्रेण भोगमोक्षप्रदायकम् ।।
गौरीश्रृंगे हिमवत: कल्पवृक्षोपशोभितम् ।
दीप्ते दिव्यमहारत्नहेममण्डपमध्यगम् ।।
रत्नसिंहासनासीनं प्रसन्नं परमेश्वरम् ।
मंदस्मितमुखाम्भोजं शंकरं प्राह पार्वती ।।
श्रीदेव्युवाच
देवदेव महादेव लोकशंकर शंकर ।
मन्त्रजालानि सर्वाणि यन्त्रजालानि कृत्स्नश: ।।5।।
तन्त्रजालान्यनेकानि मया त्वत्त: श्रुतानि वै ।
इदानीं द्रष्टुमिच्छामि विशेषेण महीतलम् ।।6।।
इत्युदीरितमाकर्ण्य पार्वत्या परमेश्वर: ।
करेणामृज्य संतोषात्पार्वतीं प्रत्यभाषत ।।7।।
मयेदानीं त्वया सार्धं वृषमारुह्य गम्यते ।
इत्युक्त्वा वृषमारुह्य पार्वत्या सह शंकर: ।।8।।
ययौ भूमण्डलं द्रष्टुं गौर्याश्चित्राणि दर्शयन् ।
क्वचिद् विन्ध्याचलप्रान्ते महारण्ये सुदुर्गमे ।।
तत्र व्याहन्तुमायान्तं भिल्लं परशुधारिणम् ।
वध्यमानं महाव्याघ्रं नखदंष्ट्राभिरावृतम् ।।
अतीव चित्रचारित्र्यं वज्रकायसमायुतम् ।
अप्रयत्नमनायासमखिन्नं सुखमास्थितम् ।।
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स्वर - भास्कर पंडित
Voice By - Bhaskar Pandit
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"लगाइये आस्था की डुबकी "
~ मंत्र सरोवर ~
@MantraSarovar
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