दयाचंद ग्रंथावली #dayachand mayna #रागनी ग्रंथावली #Haryanvi Ragani dayachand Maina #granthavali kav
दूसरे संस्करण की भूमिका
महाशय दयाचंद मायना ग्रंथावली सन् 2011 में प्रकाशित हुई थी। ग्रंथावली के
प्रकाशन के बाद हरियाणा में सभी वर्गों में महाशय दयाचंद की रागणियों पर दूसरे लोगों
की छाप को लेकर गहरा विमर्श
भी मुंबई में रहते हुए महाशय दयाचंद के गई गीतों को देश की मशहूर गायिकाओं से
गुवाया है।
#kaviyon #haryanvi #kavi #kavisammelan #kavita #poetryevent #motivation #lakhmichand #motivational इशारा करते हुए) चौ.
भरतसिंह राठी। उनके आगे आ करके और सबसे पहले सुणाया करते। उनके
साथ एक बड़ा अन्याय हुआ है, जो मनै अपणी आखों देख्या है। कि उन्होंने
सुभाषचंद्र बोस की कथा लिखी। 1947 के बाद जब वहां से पंजाबी भाई आए
यहां तो वो एक चीज़ ल्याये थे 'एस्टड' जिसपै सुभाष का फोटू हुया करता था।
वो एस्टड उन्होंने रागनी म्हं गाया । और मेहरसिंह की जितनी बातें थीं, वो अलग
थी। उनकी भाषा और इनकी भाषा में बोहत ज्यादा अंतर था। वो केवल
खेती-बाड़ी के बारे में लिखते थे। लेकिन इन्होंने देशभक्ति के गीत गाए। सुभाष
की कथा बनाई। राजकिशन (राजकिशन अगवानपुरिया) नै इनकी कथा को
काट करके, इनके नाम को काट करके और मेहर सिंह का नाम जोड़ दिया।
मैं जाट जाति से संबंध रखता हूं। और लोग सोचते हैं कि जाट राजी हो जाएंगे।
महर्षि दयानंद जैसे सच्चाई कया करते, वही कहऱ्हा हूं। कि उन्होंने सिर्फ एक
बेचारे गरीब परिवार के होणे के कारण इनके साथ अन्याय किया, राजकिशन
नै इनका नाम काट करके और उनके नाम से, मेहरसिंह के नाम से गाई । मैंने
उनको यहां रोहतक एक कंपीटीशन था, रागणी कंपीटीशन, और मैं वहां पर जज
था। मैंने राजकिशन को पकड्या, कहा कि अरे ये क्या कर रह्या है तू । ये मेरे
हाथ के लिख्ये हुए है ये बातें सारी और दयाचंद की हैं, बोल्या क्या करें मास्टर
जी उनके नाम से पैसे नहीं आते। मैं, फिर ये जघन्य अपराध क्यूं कर रहे हो ।
बोल्या, 'मेहरसिंह के नाम से पैसे आ जाते हैं।' तो वो जानते थे
अंकित बरौणा : “अगर आपके गांव को लेकर बात की जाए तो कवि दयाचंद मायना
खुद।"
ने जितने भी उनके भजन रागणी हुई हैं ज्यादातर मायना गांव को प्रसिद्ध किया
है। आपको कैसा फख हो होता है?"
बलवान सिंह राठी : “छाती गर्व से फूल जाती है। मैं कोसळी गया। सबसे पहले 1963
में मास्टर लगा। वहां कहने लगे कि मास्टर जी आ गए। 'कहां के हैं?' 'मायना
के।’ ‘आच्छा दयाचंद वाले मायने के?' तो मेरी छाती गर्व से फूल गई। (भावुक
हो गए) उन्होंने हमारे गांव का नाम इतना किया कि हमारी गली भी गाई है।
हमारा बराह पान्ना, ‘बराह' पान्ना है और जो कि राजकिशन नै गाया 'बाहर'
वाला पान्ना। बरौणे म्हं कोई 'बाहर' पान्ना नहीं है। ये बराह पान्ने को तोड़कै
बाहर पान्ना कर दिया। तो उनके नाम पर हमनै गर्व है और वे एक सच्चे कवि
थे। गरीब की कहाणी उन्होंने गाई, गांव की गाई, देशभक्ति की गाई, समाज
सुधार की गाई, उन्होंने कोई पहलू नहीं छोड्या ।”
अंकित बरौणा : “जैसे उन्होंने समाज को मार्गदर्शन दिखाने का भी काम किया। आप
क्या कहते हैं?"
बलवान सिंह राठी : “गांव उनको हमेशा ऐसे कवि के रूप में जाणेगा जो कि रचनात्मक
कवि कहलाएगा। मैं उनको कालिदास से कम नहीं समझता, कवि कालिदास
से। हमारा सारा गांव उन पर न्यौछावर है। उन पर गर्व करता है। इसीलिए जब
यहां कोई आ करके उनकी बात को कहता है तो सारा गांव टूटकर पड़ता है
हां भई हम तेरा सम्मान करते हैं। क्यूं कि वो सच्चाई को गा गया।”
अंकित बरौणा : “अब गांव उनकी कैसे मदद करेगा?"
बलवान सिंह राठी : “गांव तो मदद करने के लिए,
क्योंकि पंचायत बदलती रहती
है। पहल्यां जो सरपंच था उसके टैम में यहां पर के उनके नाम से एक पार्क,
वो मंजूर हुआ था। मुझे अफसोस है कि वो अब तक पूरा नहीं हुआ। सरकार
आती हैं चली जाती हैं। उद्घाटन करते हैं, अब ये यहां के मंत्री जो ग्रोवर जी
वा करके नींव रखगे थे, लेकिन सरकार से म्हारी मांग है कि वो जल्दी से पूरा
किया जाए। वो पार्क अर वो स्मारक । महर्षि दयानंद से भी ज्यादा प्रसिद्ध इस
इलाके को कर गए वो । गुजरात के महर्षि दयानंद थे ना! सबसे ज्यादा यहां
पूजे गए। और यहां मायने के दयाचंद थे जो कलकत्ते में सबसे ज्यादा पूजे
गए। रोहतक म्हं नहीं, क्यों, कि रोहतक को गाया है. उन्होंने । मायना से पहले
रोहतक को भी गाया है उन्होंने । वो कोई पहलू अछूता नहीं, गरीब आदमी की
कहाणी, भक्ति की कहाणी, वेदों पुराणों से लिखी और मद्भागवत से लिखी हुई
बातें, वो सब गाई हैं उन्होंने । कमाल ये था कि अनपढ़ होते हुए भी, लख्मीचंद
अनपढ़ था। वो कह गया लेकिन उसके साथ शास्त्री जी थे। जो पढ़ कै सुणाया
करते। इनको कौण सुणाणे आळा था? कोई नहीं, अंतर्ज्ञान था इनको । सुण्या
था इन्होंने । इसलिए इस महान कवि का आदर करना चाहिए। सरकार से मेरी
मांग है कि उनका बहोत बड़ा स्मारक होणा चाहिए। उनकी यहां पर चेयर होणी
चाहिए महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में, ताकि उसके नाम से पीएच. डी. कर
सकें बच्चे ।"
अंकित बरौणा : “बहुत-बहुत धन्यवाद सर न्यूज इंडिया ट्रस्ट को समय देने के लिए।"
बलवान सिंह राठी : "(हंसकर) धन्यवाद आपका। के आपने इस महान कवि के बारे में और
इतनी सब बातें जो है आप इकट्ठी कर रहे हो संकलित कर रहे हो। आशा है कि कवि दयाचंद
के साथ न्याय होगा । अर सच्चाई ये है उस कवि से अन्याय होता आया है इस समाज में। लेकिन
वो मिटेगा नहीं उसका नाम। हम उस पर गर्व करते हैं और
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