धान की सीधी बिजाई..!!!
#पूसा बासमती 1985
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (पूसा संस्थान) ने सीधी बुवाई के लिए बासमती धान की दो उन्नत किस्में पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 विकसित की थी..!!
उत्तर पश्चिमी भारत में धान की खेती में तीन प्रमुख समस्याएं हैं - गिरता जलस्तर, धान रोपाई के लिए श्रमिकों की कमी और रोपाई विधि में होने वाला ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्सर्जन..!!!
इन तीनों समस्याओं के समाधान के लिए धान की सीधी बुवाई विधि कारगर है। इससे लगभग 33 फीसदी पानी की बचत होती है। लेकिन सीधी बुवाई विधि में खरपतवारों की समस्या रहती है। इसलिए खरपतवार हटाने में काफी मेहनत और लागत लगती है। यही कारण है कि किसान सीधी बुवाई विधि को अपनाने से बचते हैं..!!!
पूसा बासमती 1985 को बासमती धान की किस्म पीबी 1509 से डेवलप किया गया है जो 115-120 दिनों में तैयार होती है और औसतन 52 क्विंटल प्रति हेक्टेअर की पैदावार देती है..!!!
इन दोनों किस्मों को सीधी बुवाई विधि और खरपतवार नियंत्रण के लिए विकसित किया गया है। इमेजथापायर 10% एसएल एक व्यापक क्षमता वाला खरपतवारनाशी है...!!!!
इसके प्रति टॉलेरेंस होने के कारण ये किस्में सीधी बुवाई के लिए कारगर हैं क्योंकि खरपतवारनाशी का प्रयोग कर धान को नुकसान नहीं होगा जबकि खरपतवार नष्ट हो जाएंगे। इससे खरपतवार निकालने के लिए निराई-गुडाई की मेहनत और लागत बचेगी..!!!
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