DHAMEKH STUPA SARNATH VARANSI 2022 | धमेख स्तूप का रहस्य आखिर क्या है | सारनाथ वाराणसी उत्तर प्रदेश
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धर्मराजिका स्तूप -
इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के द्वारा भगवान बुद्ध के धातु अवशेषों को प्रतिस्थापित करने के उद्देश्य से कराया गया है उल्लेख है कि सम्राट अशोक ने भगवान बुद्ध के 8 मूल स्तूपो में से सात धातु स्तूपो को खोल कर धातु को एकत्रित करके हजारों स्तूपो का निर्माण कराये थे |यह धर्मराजीका स्तूप उन्हीं में से एक है | साथियों यह धर्मराजीका स्तूप इसी स्थान पर दबा हुआ था | जब यहां पर खुदाई हुई थी | तब इसके अंदर से यही स्तूप निकला था | यह एक छोटा स्तूप था | जिसका व्यास केवल 49 फीट था | लेकिन साथियों इस स्तूप के बनावटी से पता चलता है कि यह स्तूप बहुत विशाल स्तूप रहा होगा जो दुर्भाग्यवश काशी नरेश राजाचेत सिंह के दीवान जगत सिंह द्वारा भवन निर्माण सामग्री के दोहन करने के उद्देश्य से सन 17 94 ईसवी में इस धर्मराजीका स्तूप को नष्ट कर दिया गया था | इस दुखद प्रक्रिया में प्रस्तर पेटीका मे हरे संगमरमर की धातु मंजूषा भी प्राप्त हुई थी | यह प्रस्तर पेटीका भारतीय संग्रहालय कोलकाता में आज भी सुरक्षित रखा गया है | लेकिन धातु मंजूषा गंगा नदी में फेंक दिया गया था | और साथियों इस धर्मराजीका स्तूप के खनन से दो अति महत्वपूर्ण प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी | पहली प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर की कुषाण कालीन बोधिसत्व की मूर्ति दूसरी प्रतिमा गुप्तकालीन बुद्ध प्रतिमा जिनमें धर्म चक्र प्रवर्तन की मुद्रा में दर्शाया गया है
सम्राट अशोक स्तंभ -
इस स्तंभ का निर्माण 272 ईसवी में इस स्तंभ को बनाया गया था | साथियों जो सम्राट अशोक थे उन्होंने मात्र 3 वर्ष के अंदर 84000 स्तूपो का निर्माण कराए थे | इस अशोक स्तंभ को चुनार के बलुआ पत्थर से इस स्तंभ को बनाया गया है और इस पिलर के ऊपर मौर्यकालीन सम्राट अशोक के नियम सारे लिखे गए थे जो सम्राट अशोक के जमाने में नियम लागू होते थे
मुलगंध कुटी -
भगवान बुद्ध के ध्यान साधना स्थल पर निर्मित यह विशाल मंदिर का भग्नावशेष है | दोस्तों ह्वेंनसांग के अनुसार इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 61 मीटर थी | और इस मंदिर के मोटी दीवार देखकर इस जगह पर बने भव्य मंदिर का कल्पना की जा सकती है और इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर था और इस मंदिर का मंडप आयताकार था | और इस मंदिर का अलंकृत ईटों की सज्जा देखकर इस मंदिर का निर्माण गुप्त काल में प्रतीत होता है | और साथियों इस मंदिर के सामने जितने सारे स्तूप देख रहे हैं ए सब मनौती स्तूप हैं
धमेक स्तूप -
इस स्तूप का प्राचीन नाम धर्मचक्र स्तूप था| यह स्तूप सन 1026 ईस्वी में उत्खनन से प्राप्त हुआ था दोस्तों ये वही स्तूप है | जिसके नीचे बैठकर भगवान बुद्ध ने अपने पांच शिष्यों को अपना पहला धर्म उपदेश यहीं पर दिए थे | साथियों इस स्तूप के मध्य भाग में एलेक्स जेंडर कनिंघम ने मंजूषा धातु की खोज में इस स्तूप का लंबवत खनन किया था | जिसके शिखर से लगभग 3.20 मीटर नीचे एक अभिलेख युक्त पट्ट प्राप्त हुआ था |जिस पर छठी से सातवीं ईसवी के बीच ब्राह्मी लिपि में बौद्ध मंत्र धम्म व प्रभवा लिखा था | और दोस्तों इस स्तूप के भीतरी भाग में काफी नीचे मौर्यकालीन निर्मित ईट भी प्राप्त हुए थे | और दोस्तों इस स्तूप का वर्तमान समय का स्वरूप गुप्तकालीन बताया जाता है | इस बेलनाकार ठोस स्तूप का व्यास 28.5 मीटर व ऊंचाई लगभग 33.35 मीटर है | और दोस्तों इस स्तूप के ऊपर तलाशी गई पट्टीयो पर ज्यामिति स्वास्तिक. पत्र बल्लरी.पुष्प लता. मानव व पक्षी सुंदर चित्र बनाए गए हैं
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