Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन
विचारणीय बात यह है कि यदि संकल्प-पूर्ति काल में अपना अस्तित्व रह सकता है, तो संकल्प-निवृत्ति काल में भी अपना अस्तित्व रहेगा। अतः संकल्प-निवृत्ति को आदर देना बड़े महत्त्व की बात है।
जो भोगी है, वही कर्त्ता है। न तो शरीर कर्त्ता, न इन्द्रिय कर्त्ता, न मन कर्त्ता, न बुद्धि कर्त्ता।
अपने अधिकार माँगने का नाम ‘पाप’ रखलो और दूसरों के अधिकार की रक्षा का नाम ‘पुण्य’ रख लो।
जो जीवन है उसमें भेद नहीं है। जिसमें अपने को कुछ मान कर सन्तोष किया उसकी का नाम हो जाता है दार्शनिक भेद है।
(क) यह दार्शनिक भेद साधन हुआ।
(ख) जहाँ समस्त दार्शनिक भेद मिट कर एक होते हैं, वह साधन-तत्त्व हुआ।
(ग) और जो जीवन है, वह ‘साध्य’ है।
”है“ मैं विशेष प्रियता,”है“ में विशेष निष्ठ एवं ”है“ से अभिन्नता-यह साधन-तत्त्व है।
Негізгі бет धनीको महानिर्धन बनने वाले रोग। 31(ब) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
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