अथवा कथित कुतुबमीनार परिसर मे जहाँ एक लौह स्तम्भ स्थापित है। सोलह सौ वर्षों से यह लौह स्तम्भ गर्व से अपना सिर उठाये आंधी-पानी, धूप झेलता हुआ भी सुरक्षित है जबकि अबतक तो जंग लग कर इसे नष्ट हो जाना चाहिए था? यह प्रश्न बहुत बौना है कि हजारों साल बाद भी जंग क्यों नहीं लगा, बड़ा सवाल यह है कि सोलह सौ साल पहले भारतीय विज्ञानबोध कितना आधिक उन्नत था। इस स्तम्भ पर अपना लेख अंकित करवाने वाले गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य यह अवश्य जानते थे कि सदियों सदियों तक उनका लिखवाया हुआ इसी तरह स्थाई बना रहेगा। सोचिए आज धातु विज्ञान कितना भी उन्नत हो, दिल्ली मे स्थापित यह लौह स्तम्भ जिस तरह बनाया गया उसके लिए प्राचीन वैज्ञानिकों के आगे हमे अपना सिर उनके सम्मान मे झुकाना ही पड़ेगा।
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Негізгі бет दिल्ली का लौह स्तम्भ; Iron Piller of Delhi; EPISODE 348
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