गूरेगे’ कहानी रांगेय राघव की एक प्रसिद्ध कहानी है। यह कहानी एक गूँगे लड़के की है जिसमें शोषित एवं #पीड़ित_मानव की असहाय स्थिति का मार्मिक चित्रण किया गया है। गूँगे में ऐसी तड़पन है जो पाठक के हृदय को झकझोर देती है।
गूँगा बालक सभी का दया का पात्र है। वह जन्म से बहरा होने के कारण गूँगा है। वह सुख-दुख जो कुछ भी अनुभव करता है, उसे इशारों के माध्यम से प्रकट करता है। उसके इशारे एक प्रकार से दूसरों का मनोरंजन भी करते थे। वह इशारों से बताता था कि उसकी माँ घूंषट काढ़ती थी, छोड़ गई, क्योंकि बाप मर गया। उसका पालन-पोषण किसने किया यह तो समझ में नहीं आया। लेकिन उसके इशारों से इतना अवश्य स्पष्ट हो गया कि जिन्होंने उसे पाला, वे मारते बहुत थे। वह बोलने की बड़ी कोशिश करता है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काँय-काँय का ढेर। अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो। कैसी विडंबना है कि वह अपने हदय के उद्गार प्रकट करना चाहता है, पर कर नहीं पाता।
रांगेय राधव हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार हैं। उनकी कहानियाँ जीवन के विविध पहलुओं को छूने की विशेषता रखती हैं। उनका जन्म 17 जनवरी, 1923 ई० को आगरा में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी आगरा में ही हुई। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए, पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उन्हें सन 1961 ईी० में राजस्थान साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया था। केवल 39 वर्ष की अल्पायु में सन 1962 ईं० में उनका निधन हो गया था।
रचनाएँ - श्री #रांगेय_राषव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने सभी विधाओं में साहित्य की रचना - है। इनमें कहानी, उपन्यास, कविता तथा आलोचना मुख्य हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी-संग्रह-#राम_राज्य_का_वैभव, #देवदासी, समुद्र के फेन, अधूरी मूरत, जीवन के दाने, अंगारे न बुझे, ऐयाश मुरदे, इनसान पैदा हुआ। उपन्यास-घरॉंदा, सीधा-सादा रास्ता, अँधरे के जुगनू, बोलते खंडहर, कब तक पुकारूू तथा मुरदों का टीला।
उनकी संपूर्ण रचनाओं का संग्रह दस खंडों में ‘रांगेय राघव ग्रंधावली’ नाम से प्रकाशित हो चुका है।
भाथा-शैली - रांगेय राघव की कहानियाँ जीवन के विविध पहलुओं का बड़ा सहज उद्घाटन करती हैं। उन्होंने समाज के शोषित-पीड़ित मानव के जीवन के सथार्थ का बहुत मार्मिक चित्रण किया है। रांगेय राघव की भाषा में सरलता और प्रवाह का गुण रहता है। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ तद्भव और विदेशी शब्दों का भी सहज रूप में प्रयोग किया है जैसे चमेली आवेश में आकर चिल्ला उठी-‘मक्कार, बदमाश!’ इसी प्रकार से क्षोभ, निष्फल, नखरे, अचरज, विरस्कार, पक्षपात, शिकायत, चेतना, परदे, परिणत, गजब आदि प्रयोग देखे जा सकते हैं। उन्होंने संवादात्मक शैली का अत्यंत सहज भाव से प्रयोग किया है। इनके संवाद सहज, स्वाभाविक,संक्षिप्त तथा भावानुकूल हैं; जैसे-
‘शकुंतला क्या नहीं जानती ?’
‘कौन? शकुंतला! कुछ नहीं जानती।’
‘क्यों साहब? क्या नहीं जानती? ऐसा क्या काम है जो वह नहीं कर सकती?’
‘वह उस गूँगे को नहीं बुला सकती।’
लेखक ने शब्दों के माध्यम से वस्तु-स्थिति का यथार्थ अंकन करने में भी सफलता प्राप्त की है, जैसे गूँगे के न बोल सकने पर उसकी दशा का यह वर्णन-‘ वह ऐसे बोलता है जैसे घायल पशु कराह उठता है, शिकायत करता है, जैसे कुत्ता चिल्ला रहा हो और कभी-कभी उसके स्वर में ज्वालामुखी के विस्फोट की-सी भयानकता थपेड़े मार उठती है।
लेखक ने पेट बजाना, छत उठाकर सिर पर रखना, नाली का कीड़ा, पत्ते चाटना, कुत्ते की दुम क्या कभी सीधी होना आदि मुहावरों और लोकोक्तियों के सहज प्रयोग द्वारा भाषा की लक्षणा शक्ति में वृद्धि की है। इस प्रकार इस कहानी की भाषा-शैली प्रवाहपूर्ण, सहज, चित्रात्मक, संवादात्मक एवं भावपूर्ण है।
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