डॉ भगवान दास कीर्तनकार कामवन
(अष्टसखा श्रीगोविंदस्वामीजी के वंशज)
9828737151
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अन्नकूट के पद (गोवर्धन लीला सरस लीला )
राग बिलावल
अपने अपने टोल कहत व्रजवासियां ||शरद कह निश जान दीपमालिका जो आई॥ । गोपन मन आनंद फिरत उनमद अधिकाई ॥ ऐं पन थापे दीजीयें घरघर मंगलचार | सातवरसको सांवरो खेलत नंददुवार ॥ १ ॥ बैठ नंद उपनंद बोल वृषभान पठाये ॥ सुरपति पूजा जान तहां चल गोविंद आये ॥ वारवार हाहा करें कहो बावा यह बात ॥ घरघर गोरस संचियें कोंन देवकी जात ॥ २ ॥ कान्ह तुमारी कुशल जान एक मंत्र उपेहें । खटरस व्यंजन साज भोग सुरपतिकों देहें । नंद कह्यो चुचकारकें जा दामोदर सोय । वरस द्योसको द्योसहे महामहोत्सव होय ॥३ ॥ तब हंस बोले लाल मंत्र बहोयों एक कीनों ॥ आदि पुरुष निज जान रेंन सपनों मोहि दीनों सब देवनको देवता गिरि गोवर्द्धन राज ॥ ताहि भोग किन दीजियें सुरपतिको कहा काज ॥४ |बाढे गोधन वृंद दूध दधिको कहा लेखो | यह परचो विद्यमान नयन अपने किन देखो। तुम देखत बल खायगो मोंहों मांग्यो फल देव ॥ गोप कुशलजो चाहियें तो गिरि गोवर्द्धन सेय ॥५ ॥ गोपन कीयो विचार सबन मिल शकट जो साजे ।। बहु विध कर पकवान चले जहां बाजन बाजे । एक वनही वनकों चले एक नंदीसुर भीर ।। एकन पेंडो पावही फूले फिरत अहीर ॥ ६ ॥ एक ऊबटव्है चले एक वनही वनछाये ॥ एक गावें गुण गोविंद प्रेम उमगे न समाये ॥ गोपनको सागर भयो गिरि भयो मंदराचार ॥ रत्न भई सब गोपिका कान्ह विलोवन हार ॥७ ॥ व्रज चोरासी कोस परे गोपनके डेरा ॥ लंबे चौवन कोस जहाँ व्रजवास वसेरा ॥ सबहिनके मन सांवरो देखियत सबन मंझार ॥ कौतुक भूले देवता आये लोक विसार ॥८ ॥ लीने विप्र बुलाय यज्ञ आरंभन कीनों ॥ सुरपति पूजा मेंट राज गोवर्द्धन दीनों । देव दीवारी श्यामही सब मिल पूजन जाय ॥ नंद प्रतीत जो चाहिये तो तुम देखत बलिखाय ॥ ९ ॥ प्रथमही दूध न्हवाय बोहोरि गंगाजल ढार्यो । बडो देवता जान कान्हको मतो बिचार्यो । जेसेहें गिरिराजजू तैसो अन्नको कोट ॥ मग्नभये पूजा करें नरनारी बड छोट ॥ १० ॥ सहस्त्र भुजाउरधरें करें भोजन अधिकाई ॥ नख शिखलों अनुहार मानों दूसरो कन्हाई ॥ ललिता राधासों कहे तेरे हृदें समाय ॥ गहे अंगुरिया नंदकी सो ढोटा पूजा खाय ॥ ११ ॥ पीत दुमालो बन्यो कंठ मोतिनकी माला ॥ सुंदर सुभग शरीर झलमले नयन विशाला ॥ श्यामकी शोभा गिरि भयो गिरिकी शोभा श्याम ॥ जेसो परवत भातको ढिंग भैया बलराम ॥ १२ ॥ व्यंजन बहुत बनाय कहांलों नाम बखानों ॥ भयो भातको कोट ओट गिरिराज छिपानों ॥ बरा बिराजे भातपे चंदा पटतर सोय ॥ यज्ञपुरुष भोजन करे सब देवन सुख होय ॥ १३ ॥ जेसी कंचनपुरी दिव्य रत्ननसों छाई ॥ बलि दीनीहे प्रात छांह चलि पूरव आई ॥ बदरोला वृषभानकी रही विलोवन हार ।। ताकी बलि उन देवता लीनी भुजापसार ॥१४ ॥ सब सामग्री अरपि गोप करजोरे ॥ अगणित कीने स्वाद दास बरणे थोरे ॥ यह विध पूजा कीजिये कह्यो सबन समुझाय ॥ श्याम कह्यो सूरदाससों मेरी लीला सरस बनाय ॥
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