गगन जी का टीला का इतिहास पांडवों से जुड़ा हुआ है । अज्ञातवास काटने से पहले भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों से कहा कि अज्ञातवास में जाने से पहले तुम किसी सुनसान जगह की तलाश कर वहाँ पर भगवान शिव शंकर जी की पूजा - अर्चना करना । तब पाडंव भगवान श्री कृष्ण की बताई बात पर अमल करते हुए , सुनसान जगह की तलाश करते - करते इन पहाड़ियों पर पहुंचे । यहां पांडवों और द्रोपदी ने भगवान शिव शंकर जी की पूजा की । पूजा से खुश होकर भगवान शिव शंकर जी ने उन्हें दर्शन दिए और एक शिवलिंग देकर वरदान दिया कि भविष्य में जो यहाँ पर सच्चे मन और श्रद्धा से पूजा - अर्चना करेगा उसकी इच्छा पूरी होगी । उसके बाद पांडवों और द्रोपदी ने अज्ञातवास शुरू करने के लिए भेस बदल कर दसूहा शहर ( जिसे उस समय विराट नगरी के नाम से जाना जाता था ) में राजा विराट के दरबार में नौकरी की । अपने अज्ञातवास के दौरान प्रत्येक पूर्णमासी के दिन पांडवों में से कोई न कोई भेस बदल कर इस पहाड़ी पर आकर भगवान शिव की पूजा करता था । इस मंदिर का इतिहास कलियुग के समय से भी जुड़ा हुआ है । कहते हैं कि कलियुग के समय में हिमाचल का एक राजा जब यहाँ से पहाड़ी के नीचे से गुज़र रहा था तो उसे पहाड़ी पर कुछ दिखाई दिया और राजा ने पहाड़ी के ऊपर जा कर देखा तो उसे वहाँ पर पवित्र शिवलिंग दिखाई दिया । राजा के घर कोई औलाद नहीं थी , राजा ने यहाँ पूजा करके औलाद का वरदान माँगा कि यदि उसके घर कोई औलाद हो जाए तो वह पूर्णमासी के दिन यहाँ आ कर हवन यज्ञ करवाएगा । कुछ समय के पश्चात् राजा के घर एक लड़की ने जन्म लिया । तब राजा ने इस स्थान पर आ कर हवन यज्ञ करवाने के पश्चात् लड़की का नाम गगन रखा । तब से यह स्थान " गगन जी का टीला " के नाम से मशहूर हो गया ।
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