Shri Kaushlesh Pathak renders beautifully this famous meera bai bhajan
घडी एक नहिं आवडे,
तुम दरसण बिन मोय।
तुम हो मेरे प्राणजी,
कासूँ जीवण होय॥
धान न भावै, नींद न आवै,
बिरह सतावै मोय।
घायल सी घूमत फिरूँ रे,
मेरो दरद न जाणै कोय॥
दिवस तो खाय गमाइयो रे
रैण गमाई सोय।
प्राण गमाया झुरताँ रे,
नैण गमाया रोय।
जो मैं ऐसी जाणती रे,
प्रीति कियाँ दुख होय।
नगर ढँढोरा फेरती रे,
प्रीति करो मत कोय॥
पंथ निहारूँ डगर बहारूँ,
ऊभी मारग जोय।
मीराके प्रभु कब र मिलोगे,
तुम मिलियाँ सुख होय॥
Негізгі бет घडी एक नहिं आवडे
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