जीवन में अगर सफलता या विकास चाहिए तो मनुष्य को अपने भीतर सीखने का भाव एक शिष्य एक साधक होने का भाव रखना होगा। अगर तुम कुछ बन गए और सोच लिया कि ये में बन चुका बस उसी क्षण तुम्हारी आगे बढ़ने की प्रक्रिया पर विराम लग जायेगा,तुम गुरु बन बैठोगे और साधक नही उसी समय तुम्हारी अंतर्यात्रा रुक जायेगी और वहीं तुम अटक जाओगे।तुमको तुम्हारा अहंकार,तुम्हारा अपने को श्रेष्ठ समझने की सोच तुम्हे नीचे ही अटका देगी।मगर तुम एक शिष्य बने रहे एक सीखने की इच्छा से आगे बढ़ते रहे तो तुम सरलता के साथ निश्छल होते जाओगे एक बालक के समान और तुम अपनी अंतर्यात्रा में नित नए सोपान पर आगे बढ़ते जाओगे।भगवान दत्तात्रेय को देखिए उन्होंने कोई छोटा बड़ा का भेद नहीं जाना जिससे जो अच्छी बात सीखी उसे भी अपना गुरु बना लिया,जैसे एक चींटी को।भगवान दत्त स्वयं सिद्धों के गुरुओं के गुरु थे।त्रिलोक की तीन शक्तियां जब परम तत्व में एक होकर गुरु तत्व में प्रवेश करके भगवान दत्तात्रेय में समाहित हुई।
इसलिए जीवन में सदा सीखने का भाव रखे वही अच्छा गुरु बनेगा जो अच्छा शिष्य अच्छा साधक होगा।
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Негізгі бет गुरु वाक्यम् एपिसोड 695 : सीखते सीखते ही तुम ऊपर उठोगे।
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