अस्थाई झोपड़ी में माता जी के सत्तू की दुकान।
तीन प्रकार के सत्तू थे।
चना, मकई एवं जौ का। तीनों के रेट भी अलग-अलग।
सत्तू के साथ आंवले की चटनी मिर्ची का आचार प्याज और मूली।
स्थान था बलिया का ददरी मेला।
फिर माताजी ने सत्तू गूँथ कर दिया और मुझ सहित अरुण ने चाव से खाया।
आनंददायक रहा यह क्षण।
पूरी तौर पर सुपाच्य व पोषण युक्त।
नहीं था कोई तेल की मिर्च मसाला और स्वाद के क्या पूछने।
आनन्द की कल्पना मैं नहीं कर सकता।
Негізгі бет हमारे पूर्वज करते थे यही भोजन। unique Indian dish.
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