कठोर चट्टान पर लगातार वर्षा होते हुए भी हरियाली उत्पन्न नहीं होती। इसमें बादलों से अनुरोध करना व्यर्थ है। चट्टान को ही कोमल रेत में बदलना पड़ेगा। इसी प्रकार मानव को भी अपनी मनोभूमि को पावन बनाना चाहिए। शुद्ध मन से ही मनुष्य प्रभु के प्रेम का पात्र बनता है।
यही बात गुरुदेव हमें बता रहे हैं कि हमारी एक साँस भी व्यर्थ न जाए और इसके लिए हम सब मिलकर प्रभु से प्रार्थना करें....
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