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सांगानेरी प्रिंट- जयपुर के निकट सांगानेर नामक स्थान की सांगानेरी छपाई न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध है।
सांगानेर में छपाई का कार्य करने वाले छीपे नामदेवी छीपे कहलाते हैं।
सांगानेर (जयपुर) के सांगानेरी प्रिंट में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता था, किन्तु अब इसमें कृत्रिम रंगों का भी प्रयोग होता है।
सांगानेरी छपाई को विश्व के बाजार में पहुँचाने का श्रेय 'मुन्नालाल गोयल' (प्रबंध निदेशक राजसिको) को जाता है।
सांगानेरी प्रिन्ट कला का सर्वाधिक विकास सवाई जयसिंह के काल में हुआ।
सांगानेरी प्रिंटिंग तकनीक 16वीं और 17वीं सदी के बीच विकसित हुई।
सांगानेरी हँडब्लॉक प्रिंट को 2010 में जियोग्राफिक इंडिकेशन (G.I.) मिल चुका है।
बंधेज कला/रंगाई कला
पोमचा
ओढ़नी - गुलाबी रंग की ओढ़नी- ऐसी विवाहिता, जो अभी माँ नहीं बनी है ओढ़ती है।
पीले रंग की ओढनी - जो औरत बेटे की माँ बनी है वह पीले रंग की ओढनी ओढ़ती है, जिस पर बड़े-बड़े लड्डू बने हैं।
पंवरी दुल्हन की लाल/गुलाबी रंगी ओढ़नी पंवरी कहलाती है।
हाड़ौती क्षेत्र विधवा स्त्री द्वारा काले रंग की ओढ़नी पहनी जाती है जिसे चीड़ का पोमचा कहते हैं।
लहरिया- राज्य में विवाहिता स्त्रियों द्वारा श्रावण मास में तीज पर ओढ़ी जाने वाली लहरदार (कपड़े को जब एक सिरे से दूसरे सिरे तक बाँधकर रंगा जाता है तो उस पर लहरदार धारियाँ बन जाती हैं )ओढ़नी लहरिया कहलाती है।
श्रावण के महीने में विशेषकर तीज के अवसर पर राजस्थान की स्त्रियाँ लहरिया भांत की ओढ़नी तथा पुरुष लहरिया पगड़ी पहनते हैं।
चुनरी/घनक- बूंदों के आधार पर बनी बंधेज की डिजाइन चुनरी कहलाती है, तो बड़ी-बड़ी चौकोर बूँदों से युक्त अलंकरण को धनक कहते हैं।
बन्धेज का कार्य :-
1) बन्धेज के कार्य के लिए जयपुर व जोधपुर प्रसिद्ध है।
2) लहरिया, चुनरी व पौमचे जयपुर के प्रसिद्ध है।
3) सर्वोत्तम किस्म की बन्धेज के लिए शेखावटी क्षेत्र प्रसिद्ध हैं
कशीदा कला/कढ़ाई कला
राज्य में प्रचलित कशीदाकारी के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित है-
मुकेश- सूती या रेशमी कपड़े पर बादले से छोटी-छोटी बिंदकी वाली कढ़ाई मकेश कहलाती है।
चटापटी वर्क- कपड़े के छोटे टुकड़े काटकर दूसरे कपड़े पर लगा देना चटापटी वर्क कहलाती है।
मिरर वर्क- काँच के छोटे-छोटे टुकड़ों को कपड़े पर रखकर उसके चारों ओर सूई एवं रंगीन रेशमी धागों से कढ़ाई की जाती है, ताकि वे काँच के टुकड़े वापस बाहर न निकल जाएँ, यही कशीदा कार्य मिरर वर्क कहलाता है।
कपड़े पर मिरर वर्क सर्वाधिक बाड़मेर के चौहटन क्षेत्र में किया जाता है।
हुरमुचो - कढ़ाई की विशेष शैली, जो बाड़मेर में प्रचलित है।
मसूरिया मलमल/कोटा डोरिया- सूती धागों के साथ रेशमी धागों व जरी के काम से युक्त साड़ी को कोटा डोरिया/मसूरिया मलमल साड़ी कहते हैं, जिसके निर्माण का प्रमुख केंद्र कैथून (कोटा) व मांगरोल (बारां) है।
इसी साड़ी को राजस्थान की बनारसी साड़ी कहते हैं।
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