लोकपाल श्री हेमकुंड साहिब यात्रा उत्तराखंड में सबसे ऊँचाई पर होने वाली धार्मिक यात्रा है।समुद्र तल से 4632 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह दो धर्मो की धार्मिक यात्रा है जो सड़क मार्ग से करीब 16 किमी पैदल है।पहले गोविन्द घाट से 19 किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी लेकिन अब पुलना तक सड़क बनने के बाद यात्रा पैदल पुलना गॉंव से शुरू की जाती है।
hemkund sahib yatra 2022 | कहानी एक ताल की | दो धर्मो का पवित्र सरोवर | Rural Tales Uttarakhand
हेमकुंड साहिब को सिक्खों के पवित्र स्थल के रूप में विश्व में एक नई पहचान मिली है लेकिन इस सरोवर को हिन्दू धर्म में भी बड़ी धार्मिक मान्यता है।इसे लोकपाल तीर्थ के रूप में जाना जाता है जहाँ भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने पूर्व जन्म में शेषनाग के रूप में यहाँ कठोर तपस्या की।पांडवों के पूर्वज पांडु ने भी यहाँ वर्षों तक साधना की।इस पवित्र सरोवर के किनारे एक छोटा लक्ष्मण मंदिर है और स्थानीय लोग ऐसे ही लोकपाल के रूप में पूजते है।इसके साथ ही मंदिर प्रांगण में भ्यूंडार घाटी की अधिष्ठात्री देवी नन्दा की भी पूजा अर्चना की जाती है।यहाँ के पुजारी भ्यूंडार गाँव के है।बदरीनाथ मंदिर से आज भी लक्ष्मण मंदिर के लिए दस्तूर मिलता है जिसमें माँ नन्दा की घाघरी, लक्ष्मण जी के लिए कपड़े, चावल और साढ़े 7 हजार की धनराशि मिलती है।पुलना गाँव निवासी देवेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए बीकेटीसी से बात की जाएगी जिससे मंदिर को भव्य बनाया जा सके।
Hemkund sahib yatra 2022 | कहानी एक ताल की | Complete Info | Rural Tales | Visit Chamoli Uttarakhand
वर्तमान में लोकपाल सरोवर को सिक्ख धर्म के अनुसार हेमकुंड कहा जा रहा है क्योंकि इस स्थान पर गुरु गोविंद सिंह ने भी अपने पूर्व जन्म में दुष्टदमन के अवतार में कठोर तप किया।सालो तक साधना में लीन रहने के बाद उन्हें परमात्मा से साक्षात्कार हुआ।इसका वर्णन उन्होंने दशम ग्रन्थ में किया।सालों तक सिक्ख धर्म के अनुयाई और संत उनके द्वारा बताए गए स्थान को ढूंढते रहे और आखिरकार 1932 में बाबा मोदन सिंह और संत सोहन सिंह ने इस पवित्र कुंड की खोज की।इस खोज में भ्यूंडार घाटी के नन्दा सिंह चौहान ने भी उनका काफी साथ दिया जिन्होंने गुरुद्वारा और ट्रस्ट बनने के बाद भी यहाँ अपनी सेवाएं दी।वे 18 साल तक ग्रंथि रहे।
लोकपाल श्री हेमकुंड घांघरिया से 6 किमी की खड़ी चढ़ाई पार पहुँचा जाता है।उच्च हिमालय की बर्फीली चोटियों से घिरा यह पवित्र सरोवर सर्दियों में बर्फ से ढका रहता है जबकि जून माह में यहाँ हर साल लोकपाल और हेमकुंड साहिब के कपाट खोले जाते है जो अक्टूबर माह में अत्यधिक ठंड के कारण बंद कर दिये जाते है।यहाँ केवल ट्रस्ट के लोगों और मंदिर के पुजारी के लिए ही रहने की व्यवस्था है।बाकी सभी श्रद्धालुओं को घांघरिया जाना पड़ता है।
जुलाई माह से लोकपाल हेमकुंड ट्रेक में रंग बिरंगे फूल दिखने शुरू हो जाते है इस ट्रैक में सबसे ज्यादा ब्लू पॉपी और ब्रह्मकमल दिखाई देता है।सरोवर के चारों तरफ इन दिनों ब्रह्मकमल खिला है जो सितंबर माह तक रहता है।बर्फ़बारी कम होने का कारण इस बार ब्रम्हकमल जल्दी खिला हुआ है।
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