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वर्गीकरण (Classification)
जगत (Kingdom):- जन्तु (Animalia)
शाखा (Branch):- यूमेटाजोआ(Eumetazoa)
प्रभाग (Division):- बाइलैटरिया(Bilateria)
खण्ड (Section):- ऐसीलोमैटा(Acoelomata)
संघ (Phylum):- प्लैटीहेल्मिन्थीज
वर्ग (Class):- सिस्टोडा(Cestoda)
उपवर्ग (Subclass):- यूसिस्टोडा(Eucestoda)
गण (Order):- साइक्लोफाइलिडिया
श्रेणी (Genus):- टीनिया (Taenia)
जाति (species):- सोलियम (solium)
लक्षण (Characteristic)
टीनिया के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
1. इसका शरीर मुख्यतः 18 से 45 मीटर लंबा तथा 1 सेंटीमीटर चौड़ा होता है। यह सफेद या हल्के पीले रंग का होता है। इसका पीछे का भाग सबसे चौड़ा होता है तथा आगे की ओर बढ़ते हुए यह धीरे-धीरे पतला होता जाता है। इसका शरीर मुख्यतः तीन भागों में विभाजित रहता है- शीर्ष अर्थात स्कोलेक्स, ग्रीवा तथा प्रश्रृंखल अर्थात स्ट्रोबिला।
2. इसके शरीर के अग्र छोर एक छोटा-सा गोल घुण्डीनुमा स्कोलेक्स होता है। इसके चौड़े मध्य भाग पर, एक-दूसरे से बराबर दूरी पर स्थित, चार प्यालेनुमा मांसल चूषक (suckers) होते हैं। चूषकों के आगे का भाग शंक्वाकार होता है। इसे तुण्ड या शीर्षाग्र अर्थात् रोस्टेलम (rostellum) कहते हैं। तुण्डक अर्थात् रोस्टेलम की वृत्ताकार आधार सीमा पर दो एकान्तरित रेखाओं में व्यवस्थित 28 से 32 नुकीले, मुड़े हुए तथा काइटिनयुक्त हुक (hooks) होते हैं। अग्र रेखा के हुक, पश्च रेखा के हुकों से कुछ बड़े होते हैं। प्रत्येक हुक में तीन भाग होते हैं-मूल या आधार भाग (root or base) जिसके द्वारा हुक शीर्ष से जुड़ा होता है। चूकों तथा हुकों द्वारा फीताकृमि का शीर्ष पोषद की आँत की दीवार में धँसा रहता है जिसके कारण यह पोषद की आँत के क्रमाकुंचन (peristalsis) के बल का प्रतिकार करके मल के साथ बाहर धकेल दिए जाने से बच जाता है।
3. इसके शीर्ष के पीछे का कुछ हिस्सा अत्यधिक महीन भाग होता है जिसे ग्रीवा कहते हैं। यह खंडों में बांटा नहीं होता है तथा यह अत्यधिक क्षत्रिय कोशिका विभाजन का भाग होता है इसलिए इसे मुकुलन क्षेत्र कहते हैं क्योंकि इसमें प्रतिदिन लगभग 7 से 8 खंड लगातार बनते हैं।
4. ग्रीवा के पीछे का पूरा शरीर प्रोमिला कहलाता है। यह लगभग 800 से 1000 चपटे तथा आयताकार देह खंडों की रेखीय श्रंखला के रूप में होता है क्योंकि यह ग्रीवा भाग से बनकर धीरे-धीरे पीछे की ओर खिसकते रहते हैं। इसके शरीर के पीछे का हिस्सा सबसे बड़ा होता है।
5. इनके शरीर की देहभित्ति में बाहरी सतह पर कोशिकीय बाह्यत्वचा या अधिचर्म (epidermis ) नहीं होती, वरन् इसके स्थान पर कोशिकाद्रव्य का एक मोटा एवं चीमड़ अविच्छिन्न स्तर अर्थात् सिन्सीशियम (syncytium) होता है. जिसे आच्छादक (tegument) कहते हैं।
6. यह जीव द्विलिंगी होते हैं अर्थात इनमें नर व मादा दोनों जननांग पाए जाते हैं। जब यह लगभग 200 खंडों के पीछे पहुंचता है तो चौकोर सा हो जाता है और इसमें केवल नर जननांग परिपक्व होकर क्रियाशील हो जाते हैं फिर जब यह 300 से 350 खंडों के पीछे पहुंचता है तो इसमें मादा जननांग भी परिपक्व होकर क्रियाशील हो जाते हैं अतः इन खंडों को परिपक्व खंड कहते हैं।
7. टीनिया के नर जननांगों के अंतर्गत वृषण (testes), अपवाही शुक्रनलिकाएं (Vasa Efferentia), शुक्र वाहिका (Vas Deferens), शिशन एवं स्खलन नलिका (Penis or Cirrus and Ejaculatory Duct), जननांकुर एवं जनन छिद्र (Genital Papilla and pores) आते हैं तथा मादा जननांगों के अंतर्गत अंडाशय (Ovary), अंडवाहिनी (Oviduct), ओअटाइप (Ootype), योनि (Vagina), विटेलाइन ग्रंथि (Vitelline Gland) तथा गर्भाशय (Uterus) आते हैं।
8. इनमें जनन स्वः निषेचन द्वारा होता है। क्योंकि सामान्यतः एक मानव पोषद में एक ही फीताकृमि होता है।
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Негізгі бет How to draw Taenia Solium Diagram || टीनिया सोलियम या फीताकृमि का चित्र || Phylum- Platyhelminthes
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