सभी जीव आनंद से उत्पन्न हुए हैं और आनंद ही चाहते हैं और अंततह आनंद मे ही विलीन हो जाते हैं जब चाहना है तो निर्लिप्तता कहाँ? जो खुद को चाह विहीन कहता है वह झूठ कहता है। कोई जीव परमात्मा नही हो सकता है।
@brijmohan2330
Ай бұрын
क्या आत्मा की अवधारणा ही समस्त पापों का मूल नहीं है?
@brijmohan2330
Ай бұрын
क्या आसाराम और राम रहीम निर्लिप्त भाव से महिलाओं के साथ रमन करते हुएसन्यासी हैं?
@brijmohan2330
Ай бұрын
निर्लिप्तता केवल और केवल परमात्मा का गुण है। अन्य कोई निर्लिप्त नही हो सकता है अन्यथा जन्म ही क्यों होता। We are only tools of almighty. चाहे वो कितना ही बड़ा योगी और संत अपने को माने।
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