हम सब एक ऐसे वक़्त से गुज़र रहे हैं जहाँ ज़ुल्मो सितम के इस दौर का दूर-दूर तक कोई अंत नज़र नहीं आता। मगर इस देश के नागरिकों ने ये साबित किया है कि नफ़रत, अन्याय और भेद-भाव के ख़िलाफ़ हमेशा आवाज़ उठी है और आगे भी उठती रहेगी।
प्रतिरोध की इसी भावना को दर्शाती है बोल के इस हफ़्ते की पेशकश, सत्यम् की आवाज़ में, जावेद अख़्तर की कविता, ‘जो बात कहते डरते हैं सब, तू वह बात लिख’, परिप्लब चक्रबर्ती के चित्रण के साथ।
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Негізгі бет जावेद अख़्तर की 'जो बात कहते डरते हैं सब, तू वह बात लिख'
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