आज की मुरली(AAJ KI MURLI) सुने व पढ़े
23-08-2024
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मुरली
मुरली में निराकार परमपिता परमात्मा ने अपने साकार माध्यम (रथ) से ज्ञान सुनाया है। परमपिता शिव ने समस्त मनुष्य आत्माओं (अपने बच्चों) के प्रति यह अनन्त ज्ञान का मधुर महावाक्य कहा है।
हम सभी को बचपन से ही परमात्मा से अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रार्थना करना सिखाया जाता है। हम भी मानते हैं कि परमात्मा सर्वज्ञ है और सब कुछ जानता है। विभिन्न धर्मों में परमात्मा को सत्य, रचना और सब कुछ का ज्ञान है, लेकिन वह कौन है? क्या है? वह कब और कैसे आकर हमें ज्ञान देता है?
हम पहले भी यह ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं, इसलिए हमें लगता है कि वह निश्चित रूप से शुभकारी है। यह भी कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। जब परमात्मा आकर हमें ज्ञान देता है, तो विश्व नाटक, जो अविनाशी चक्र है, हमें पता चलता है। हम स्वयं, परमात्मा और विनाश के बारे में भी जानते हैं। परमात्मा ही इस विश्व नाटक से अलग है क्योंकि हम सभी आत्माएं इसमें शामिल हैं।
वर्तमान संगम युग में परमात्मा आकर हमें अपने स्वयं का परिचय देता है।
हम बच्चों को निराकार परमात्मा, साकार प्रजापिता ब्रह्मा तन से यह सत्य ज्ञान देते हैं। शिव बाबा ब्रह्मा को रथ मानते हैं और अपने शरीर से नई दुनिया बनाते हैं। इसलिए, हिंदू धर्म में ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा गया।
ज्ञान मुरली - ब्राह्मणों का जीवन आधार
1951 से 1969 तक ब्रह्मा मुख के माध्यम से शिव बाबा के सत्य वचन, ज्ञान मुरली, ब्राह्मणों का जीवन आधार हैं। (इसलिए इनका नाम साकार मुरली है) सालों से ये महत्वपूर्ण शिक्षाएं सुरक्षित रखी गई हैं और सभी 9000 ब्रह्माकुमारी सेवा केंद्रों में हर दिन मुरली क्लास में सेवाकेंद्र संचालिका बहन द्वारा अन्य भाई-बहनों को पढ़ाई जाती हैं। प्रत्येक दिन मुरली का मानसिक भोजन समान है। ईश्वरीय पुरुषार्थियों को इस पाठ्यक्रम से सही ढंग से सोचने, जीवन यापन करने और सेवा करने की प्रेरणा मिलती है। यह सिर्फ मंत्रोच्चारण नहीं है; बल्कि, अपने जीवन में दैवीय विवेक और संकल्प का अनुभव करना है।
साकार मुरली
५००० साल के कल्प के अंत में, साकार मुरली में स्वयं परमात्मा एक साधारण वृद्ध शरीर में प्रवेश करके सभी मनुष्य आत्माओं को सच्चे ज्ञान देता है। जो व्यक्ति प्रवेश करता है, उसे "प्रजापिता ब्रह्मा" कहा जाता है। 1936 से जनवरी 1969 तक, एक साकार शरीर ने ज्ञान मुरली सुनाई, जिसे साकार मुरली कहते हैं। इसमें भी 1963 से 1969 तक की मुरली दर्ज की गई है, और आज भी हर दिन वही मुरली पढ़ी और फिर से पढ़ी जाती है।
अव्यक्त मुरली
जब प्रजापिता ब्रह्मा (साकार बाबा) अपना शरीर छोड़कर अव्यक्त हो गए, तो शिव बाबा (परमात्मा) ब्रह्मा बाबा के साथ एक साकारी शरीर में प्रवेश कर यह ज्ञान प्रदान करने लगे। अव्यक्त बापदादा को निराकार शिव बाबा और आकारी ब्रह्मा कहते हैं। 1969 से यह अव्यक्त भाग था। दादी गुलज़ार ने 1969 से 2015 तक अव्यक्त मुरली के मधुर महावाक्यों को उचारा। पुरानी अव्यक्त वाणियां प्रकृति, मानव संसार और पूरे विश्व के वास्तविक ज्ञान का एक महत्वपूर्ण भंडार हैं।
मुरली का महत्व
बहुत से ब्राह्मण मुरली पढ़ या सुनकर अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं ताकि वे अपने पारिवारिक संबंधों को श्रीमत के अनुसार व्यवस्थित रख सकें। प्रवृत्ति मार्ग में, अधिकांश ब्रह्मा कुमार/कुमारी सेवाकेन्द्रों में नहीं अपने घरों में रहते हैं। संयमित जीवन जीना ही श्रीमत है।
जब हम ब्रह्मचर्य (पवित्रता) को अपने जीवन में लाते हैं, तो हम ईश्वरीय विद्यार्थी बनते हैं और स्वानुभूति और परमपिता परमात्मा शिव बाबा की स्मृति के साथ एक नया जीवन शुरू करते हैं। परमात्मा हमसे मुरली के माध्यम से ही बात करता है, इसलिए मुरली ही हमारी सच्ची मार्गदर्शक है। हम अपने परमपिता परमात्मा से वर्सा प्राप्त करते हैं, जो अमृत है। वर्सा क्या होता है? परमात्मा ने स्वयं इस नई दुनिया को बनाया।
श्रीमत के द्वारा हम कई बातों से परिचित हैं, जिन्हें अपने जीवन में लागू करने से स्वतंत्रता और परस्थिति को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। सारांश में, मुरली हमारे कार्यों को बताती है। मुरली पढ़ना और इसे गहराई से विचार करना हमें अपने काम की गुणवत्ता बताता है।
इस ईश्वरीय पाठ का उद्देश्य है श्री लक्ष्मी और श्री नारायण (सतयुग के प्रथम मालिक) की तरह बनना. आपको ज्ञान, शक्ति और गुणों में परमपिता परमात्मा की तरह बनना चाहिए।
यदि आपको क्लास में जाकर मुरली सुनने का समय नहीं है, तो नेट सेवा द्वारा हर दिन सार और वरदान पढ़कर समय निकाल सकते हैं। जैसे-जैसे मुरली का ज्ञान दिन-प्रतिदिन गहरा होता जाता है, समयानुसार कुछ लोगों में अद्भुत बदलाव होगा।
मुरली सुनना सुखद है जब आत्मा परमात्मा की याद में होती है। जब तुम मुरली सुनते हो, देही-अभिमानी स्थिति में बैठ जाओ। यदि आवश्यक हो तो मुरली शुरू होने से पांच मिनट पहले योग में बैठें।
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