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Ramayan Chaupai, Hanuman Jayanti: सुंदरकांड के इन संपुट का पाठ कर बजरंगबली को किया जाता है प्रसन्न
Ramayan Ramcharitmanas: श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 03 श्लोक, 02 छन्द, 58 चौपाई, 60 दोहे और लगभग 6241 शब्द हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है।
Sunderkand Ramayan Ki Chaupai: माना जाता है कि भगवान हनुमान की पूजा से सारे संकट दूर हो जाते हैं। भगवान हनुमान की वीर गाथा का वर्णन पवित्र रामायण के सुन्दरकांड में मिलता है। श्री रामचरितमानस का पंचम सोपान सुन्दरकाण्ड है। इस सोपान में 03 श्लोक, 02 छन्द, 58 चौपाई, 60 दोहे और लगभग 6241 शब्द हैं। मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने की परंपरा है। कहा जाता है कि चालीस सप्ताह तक लगातार जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक सुंदरकांड का पाठ करता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। जानिए सुंदरकांड की कुछ चौपाइयां..
1. प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
अर्थ - अयोध्यापुरी के राजा रघुनाथ को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है।
2. राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥
एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी॥
अर्थ - जागते ही उन्होंने ‘राम! राम!’ ऐसा स्मरण किया, तो हनुमानजी ने जाना की यह कोई सत्पुरुष है। इस बात से हनुमान जी को बड़ा आनंद हुआ॥ हनुमान जी ने विचार किया कि इनसे जरूर पहचान करनी चहिये, क्योंकि सत्पुरुषों के हाथ कभी कार्य की हानि नहीं होती॥
3. तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥
अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥
अर्थ - जिससे प्रभु कृपा करे ऐसा साधन तो मेरे है नहीं। क्योंकि मेरा शरीर तो तमोगुणी राक्षस है, और न कोई प्रभु के चरण कमलों में मेरे मन की प्रीति है॥ परन्तु हे हनुमानजी, अब मुझको इस बात का पक्का भरोसा हो गया है कि भगवान मुझ पर अवश्य कृपा करेंगे। क्योंकि भगवान की कृपा बिना सत्पुरुषों का मिलाप नहीं होता॥
4. जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा शोभायमान नहीं होती। ऐसे ही राम नाम बिना वाणी शोभायमान नहीं होती॥
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