जब घुसा आल्हा उदल के किले में; भीतर जाने से क्यों डरते हैं लोग? Mahoba Bundelkhand ka रहस्यमई किला।
Aalha Udal की वीरता की कहानियों से न केवल बुंदेलखंड बल्कि पूरा देश परिचित है।
आल्हा को बुंदेलखंड का सेनापति कहा जाता है।
इनका अभेद्य किला महोबा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर सालट गांव में स्थित है।
1140 ईस्वी में महोबा के दिस राजपुर गांव में आल्हा का जन्म हुआ था जिससे दसहरपुर भी कहा जाता है।
दक्षराज आल्हा के पिता थे तथा उदल आल्हा के छोटे भाई।
आल्हा ऊदल की नगरी के रूप में ही महोबा को जाना जाता है।
9वीं से 12वीं शताब्दी तक बुंदेलखंड में चंदेलों का शासन था।
आल्हा के छोटे भाई उदल से पृथ्वीराज चौहान का घनघोर युद्ध हुआ था जिसमें उदल मारे गए।
उदल की मृत्यु के बाद आल्हा की स्थिति पागलों जैसी हो गई थी, उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की सेना पर बेजोड़ आक्रमण किया।
जो आगे आता था वह आल्हा का शिकार हो जाता था।
युद्ध के दौरान एक बार आल्हा और पृथ्वीराज चौहान आमने-सामने हुए थे तब गुरु गोरखनाथ ने पृथ्वीराज की जान बचाया था।
आल्हा ने उन्हें अभयदान दे दिया तब से आल्हा नाथ संप्रदाय के शिष्य हो गए और तभी तभी से गायब हैं।बुंदेलखंड के लोग आज भी Aalha को अजर अमर मानते हैं।
आल्हा ऊदल Aalha Udal के किले के सामने मामा माहिल द्वारा स्थापित तालाब भी है तथा एक सुरंग, जिसके बारे में कोई ठीक से बता नहीं पता कि वह कहां निकलती है।
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