जब श्री रजनीश से खो गए हरि। वह घटना जिसे भुला न सके ओशो। @gurustories
गुरुप्रेमियों ,
बाल्यकाल में मित्रों की अलग ही जगह होती है। अगर मित्रता प्रगाढ़ हो तो फिर क्या कहने। दिन हो या शाम समय का पता ही नहीं होता। मित्र एक दूसरे के साथ पूरा पूरा दिन गुजार लेते है और थकान का नमो निशान नहीं होता। भूख प्यास की भी सुध नहीं रहती।
बालक रजनीश के भी ऐसे ही दिन थे। दोनों मित्र नर्मदा किनारे वृक्ष के नीचे खूब मस्तियाँ करते। रजनीश बंसी बजाते और मित्र तबला बजता। जब मन करता तब नर्मदा में डुबकी लगा देते और खूब तैरते।
एक दिन भी दोनो न मिलते तो मन नहीं लगता।
फिर नियति ने अपना पासा फेका और सब बदल गया। न मित्र रहा न संगीत। सब छिन गया।
ऐसा क्या हुआ जानने के लिएअवश्य सुने श्री रजनीश के बाल्यकाल की मार्मिक घटना।
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A special thanks to the makers of "Rebellious Flower" a movie based on Osho life and who's clips have been used in this video.
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