कूटस्थः भ्रू मध्य के थोड़ा ऊपर एक ज्योतिर्मय मण्डल है। इसी
को कूटस्थ कहते हैं। इस ज्योतिर्मण्डल में प्रथम मण्डल श्वेत ज्योति का
है। यह इसका बहिर्मण्डल है। दूसरा मण्डल सुनहरे पीतवर्ण का है।
तीसरा गाढ़े नीले रंग का है। यह कभी काले रंग का भी दिखलाई देता है।
इस काली ज्योति के भीतर एक शुभ्र वर्ण का शुकतारे जैसा विन्दु है ।
श्री लाहिड़ी महाशय इन ज्योतिर्मण्डलों को वेदों के रूप में मानते हैं।
उनके अनुसार श्वेत ज्योति अथर्ववेद, पीली ज्योति ऋग, नीली सामवेद और विन्दु यजुर्वेद का प्रतीक है। श्रीमद् भगवद्गीता की आध्यात्मिक व्याख्या में उन्होंने कूटस्थ को कृष्ण और मणिपुर चक्र में प्राण के तेज को जीव भाव रूप अर्जुन नाम दिया है। कूटस्थ ब्रह्म स्वरूप है क्योंकि शास्त्रों में जैसा लिखा है कि समस्त सृष्टि भगवान के उदर में स्थित है, उसी प्रकार कूटस्थ के भीतर ही साधक को आत्मा, परमात्मा एवं पारलौकिक, लोक, लोकान्तर सबका दर्शन होता है।
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Негізгі бет कूटस्थ और परब्रह्म || क्रिया योग रहस्य || How to do kriya yoga
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