ये बड़ा मक़बरा, दिखने में जितना आकर्षक है, उतना ही रहस्यमयी भी है। उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक नगर कालपी में स्थित चौरासी गुम्बद इस क्षेत्र के मध्यकालीन इतिहास का एक गवाह है। माना जाता है कि इसका निर्माण 15वीं या 16वीं शताब्दी में हुआ था। मगर इस विशाल मक़बरे में कौन दफ़न है, इस बारे में आज भी अलग लग बातें कही जाती हैं। सिर्फ़ ये ही नहीं, इसका नाम चौरासी गुम्बद कैसे और क्यों पड़ा, इस पर भी विभिन्न राय हैं। मगर फिर भी अपनी अद्भुत वास्तुकला और इसकी कहानी की वजह से, ये कालपी का एक प्रसिद्द स्मारक माना जाता है।
उत्तर प्रदेश में झाँसी और कानपुर के बीच, यमुना नदी के तट पर स्थित, कालपी का इतिहास से गहरा रिश्ता रहा है। और यहाँ मौजूद कई स्मारकों के अवशेष इस बात के गवाह हैं। क्या आप जानते हैं, कि कालपी को महाकाव्य महाभारत के रचयिता ऋषि व्यास का जन्मस्थान माना जाता है? इतना ही नहीं, मुग़ल बादशाह अकबर के नौ रत्नों में से एक, बीरबल का जन्मस्थान भी कालपी को ही माना जाता है।
मध्यकाल में, कालपी जेजाकभुक्ति क्षेत्र (वर्तमान के बुंदेलखंड) का हिस्सा था और 10 वीं -11 वीं शताब्दी में यहां चंदेल राजवंश का शासन था। चंदेल राजाओं ने यहाँ एक क़िला बनवाया था, जिसे चंदेलों के आठ महान क़िलों में से एक माना जाता है।
12वीं शताब्दी में कालपी ग़ौर शासक मुहम्मद ग़ौरी के शासन में आ गया था। इसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजवंश - मम्लूक, ख़िलजी, तुग़लक़, सयैद और लोदी ने कालपी और उसके क़िले को अपने एक महत्वपूर्ण गढ़ के रूप में इस्तेमाल किया जो उनके नियंत्रण वाले यमुना-क्षेत्र में, उनके काम आता था। 14 वीं शताब्दी में यहाँ कुछ समय के लिए एक छोटी रियासत, कालपी सल्तनत का शासन रहा। मगर आज भी शहर में सुल्तानों के समय के स्मारक देखे जा सकते हैं, जिनमें सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण है चौरासी गुम्बद..
इसे लोदी बादशाह का 'चौरासी गुम्बद' कहा जाता है। पर यह 'बादशाह' कौन था, इस पर अलग अलग मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह दिल्ली के अंतिम सुल्तान, इब्राहीम लोदी के भाई जलाल खां की क़ब्र है। जलाल खां ने कुछ समय के लिए कालपी पर शासन किया था और माना जाता है, कि उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें इस मकबरे में दफ़नाया गया था। इसकी वास्तुकला को देख कर ये कहा जाता है कि ये मक़बरा लोदी काल का ही है।
यहाँ पर कई क़ब्रें हैं जिनमें से प्रमुख क़ब्र बड़े गुंबद के नीचे है। हालाँकि आज इस गुम्बद का ऊपरी हिस्सा मौजूद नहीं है। मक़बरे में कई बड़े स्तम्भ और महराबें हैं जो इसे एक भव्य रूप देती हैं। ऐसा माना जाता है कि यहाँ चौरासी स्तम्भ हैं इसलिए इसका नाम चौरासी गुम्बद पड़ा। पर इस पर भी इतिहासकारों की अलग अलग राय है। ये भी कहा गया है कि यहाँ लगभग चालीस बड़े और छोटे गुम्बद हैं इसलिए इसका नाम एक समय में चालीसी गुम्बद रहा होगा। ये मक़बरा एक चौकोर आधार पर बना हुआ है और इसके कई हिस्सों पर प्लास्टर से बने सुन्दर फूल और अन्य डिज़ाइन देखे जा सकते हैं।
आज भी ये रहस्यों से घिरा एक स्मारक है और यहाँ आपको लोग अपने अलग अलग विश्वासों के साथ आते दिखाई देंगे। मगर चौरासी गुम्बद कालपी के इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण पन्ने ज़रूर खोलता है..
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Негізгі бет कालपी का चौरासी गुम्बद | Kalpi's Chaurasi Gumbad
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