राग् ललित्।
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे
मेरी दास्तां को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे
जो कहता था कल तक संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे
कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे
Негізгі бет कोई पास आया सवेरे सवेरे। जग्जित् सिंह गज़ल्।
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