वेदव्यास जी ने कलियुग को क्यों बताया सर्वश्रेष्ठ..? Why Kalyuga is the best in all Yuga..?
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मित्रों जैसा की हम सभी जानते है की हिन्दू धर्मग्रंथों में समय के काल खंड को चार युगों अर्थात सतयुग, सतयुग जिसमे राजा हरिशचंद्र हुए और उन्होंने अपने स्वप्न में दिए हुए वचन का भी पालन करते हुए अपना सर्वश्व त्याग दिया और एक कठिन जीवन जिया। यह युग सत्य का युग था। मनुष्यों के भीतर वृषरूप धर्म अपने चारों पादों से युक्त होने के कारण सम्पूर्ण रूप में प्रतिष्ठित होता है। उस में छल-कपट या दम्भ नहीं होता
त्रेतायुग, किंतु त्रेता में वह धर्म अधर्म के एक पाद से अभिभूत होकर अपने तीन अंशों से ही प्रतिष्ठित होता है। अगर आसान भाषा में समझा जाये तो मनुस्य जीवन में २५% अधर्म आ जायेगा बाकी ७५% धर्म के सहारे ही इस युग का जीवन आगे बढ़ेगा। इस काल में भगवन परशुराम और भगवान् श्री राम ने जन्म लिया और रावण जैसे अधर्मी का वध कर के पुनः धर्म की स्थापना की।
द्वापरयुग:- द्वापर में धर्म आधा ही रह जाता हैं। आधे में अधर्म आकर मिल जाता हैं। अगर आसान भाषा में समझा जाये तो मनुस्य जीवन में ५० % अधर्म आ जायेगा बाकी 50% धर्म के सहारे ही इस युग का जीवन आगे बढ़ेगा। इस काल में भगवान् श्री कृष्णा ने जन्म लिया और अधर्म का नाश करके पुनः धर्म की स्थापना की।
और कलियुग :- परंतु कलियुग आने पर अधर्म अपने तीन अंशो द्वारा सम्पूर्ण लोकों को आक्रान्त करके स्थित होता है और धर्म केवल एक पाद से मनुष्यों में प्रतिष्ठित होता है। प्रत्येक युग में मनुष्यों की आयु, वीर्य, बुद्धि, बल तथा तेज क्रमशः घटते जाते हैं। अगर आसान भाषा में समझा जाये तो मनुस्य जीवन में 75% अधर्म आ जायेगा बाकी 25% धर्म के सहारे ही इस युग का जीवन आगे बढ़ेगा।
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