महाभारत की कथा में, द्रौपदी और अश्वत्थामा के बीच बातचीत एक महत्वपूर्ण और भावनात्मक घटना है। अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था और महाभारत के युद्ध के अंत में उसने पांडवों से प्रतिशोध लेने के लिए अत्यंत क्रूर कदम उठाया। आइए एक काल्पनिक संवाद की कल्पना करें जो द्रौपदी और अश्वत्थामा के बीच हो सकता है, जब द्रौपदी को अश्वत्थामा के कृत्य का पता चलता है:
द्रौपदी और अश्वत्थामा का संवाद
द्रौपदी: (आँखों में आँसू और गुस्से से) अश्वत्थामा! तुम्हारा यह निंदनीय कार्य कैसे? तुमने हमारे निस्सहाय पुत्रों को मार डाला, जबकि वे सो रहे थे? यह कायरता और अधर्म है!
अश्वत्थामा: (आवाज में गहन पछतावा) द्रौपदी, मुझे अपने कृत्य का पछतावा है। लेकिन मेरे मन में प्रतिशोध की आग जल रही थी। मेरे पिता को छल से मारा गया, और मैं उनके लिए न्याय चाहता था। मैंने जो किया, वह गलत था, परंतु उस समय मेरी विवेकशक्ति धूमिल हो गई थी।
द्रौपदी: (क्रोध और दुःख से) प्रतिशोध के कारण तुमने मासूम बच्चों का वध किया! क्या यह न्याय है? तुम्हारे पिता गुरु द्रोणाचार्य एक महान योद्धा और आदर्श थे। क्या तुमने सोचा कि वे तुम्हारे इस कृत्य से प्रसन्न होंगे?
अश्वत्थामा: (निराशा में सिर झुकाते हुए) नहीं, द्रौपदी, मैं जानता हूँ कि मेरे पिता भी इस कृत्य से निराश होंगे। मैंने अपने क्रोध और दुःख में आकर यह घोर पाप किया। अब मुझे केवल पश्चाताप और प्रायश्चित ही बचा सकता है।
द्रौपदी: (थोड़ी नरमाई से) पश्चाताप तुम्हें मेरे पुत्रों को वापस नहीं ला सकता, अश्वत्थामा। लेकिन अगर तुम वास्तव में प्रायश्चित करना चाहते हो, तो तुम्हें अपनी शेष जीवन सत्य, धर्म और सेवा में बिताना होगा।
अश्वत्थामा: (गंभीरता से) मैं तुम्हारे शब्दों का मान रखूंगा, द्रौपदी। मेरा जीवन अब एक साधना होगा, जिससे मैं अपने पापों का प्रायश्चित कर सकूं।
द्रौपदी: (दुःख और करुणा के साथ) जाओ, अश्वत्थामा। ईश्वर तुम्हें सद्बुद्धि दे और तुम्हारे मन को शांति मिले। तुम्हारे कर्मों का फल तुम्हें मिलेगा, लेकिन अपनी आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास करते रहो।
Kalki 2898 AD | मैं श्रापित अश्वथामा हूँ | जब द्रौपदी की बात सुनकर फूट फूटकर रोये अस्वथामा |
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