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कल्याण चाहते हैं तो स्वयं को गुरु को सौंप दें
🔆 आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज ने चंद्र प्रभु भगवान की स्तुति करते हुए एक दोहा लिखा है-
कौन पूछता मूल्य क्या, शून्य रहा बिन अंक।
आप अंक हैं शून्य में, प्राण फूँक दो शंख!!
इस दोहे में बताया गया है कि अंक के बिना शून्य का कोई अस्तित्व नहीं है। भले ही उनकी संख्या कितनी भी बढ़ा दी जाए। यही स्थिति हमारी है। गुरु के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं होता। हम बिना अंक के शून्य की तरह होते हैं।
🔆 गुरु हमारे जीवन में अंक की तरह है। अंक वह है जिसे हम संख्या कहते हैं। अंक विशेष के आगे जब शून्य की संख्या बढ़ती जाती है, उस पूरी संख्या का मूल्य कई गुना बढ़ जाता है। इसी तरह हम उस शून्य की तरह हैं जो गुरु रूपी अंक के साथ मिलकर अपना मूल्य बढ़ा सकते हैं।
🔆 अंक शब्द का एक और अर्थ होता है- मां की गोद। मां की गोद बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान है। उसकी गोद में आकर बच्चा अपनी हर चिंता, हर दुख भूल जाता है। जमाने भर का सुकून उसे वहीं मिल जाता है पर जब बच्चा बड़ा होता है और उसमें अहम भाव आने लगता है, तो वह मां की गोद से दूर होने लगता है तब वह अपने ही पतन को आमंत्रित करता है। इसी तरह गुरु भी हमारे लिए मां की गोद की तरह ही सुरक्षा प्रदान करते हैं। जब हम अपने अहंकार के कारण गुरु का अनुसरण और अनुकरण बंद कर देते हैं तो अपने ही विनाश की शुरुआत करते हैं।
🔆 यदि हम अपना कल्याण चाहते हैं तो अहंकार का विसर्जन करके हमें पूर्ण समर्पित होकर गुरु शरण ले लेनी चाहिए। अपनी समस्त चिंताएं और दुख उन्हें सौंप देने चाहिए। हमारा निश्चित रूप से उद्धार हो जाएगा। हम वह पा लेंगे जो हम पाना चाहते हैं।
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Негізгі бет कल्याण चाहते हैं तो स्वयं को गुरु को सौंप दे | 6 july 2024 | निर्यापक श्रमण मुनिश्री वीरसागरजी
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