|| जय श्री कृष्णा ||
श्री कृष्ण लीला स्थली ब्रज में अनेकों स्थानों में आपको देखने को मिलेगी।
फिर चाहे नंदगांव हो या बरसाना हो या गोकुल हो या फिर गोवर्धन ठाकुर जी की कृपा से अनेकों स्थानों में दर्शन करने के बाद हम आपसे ये हीं कहेंगे कि आज भी हम यह मानते हैं कि ठाकुर जी की लीला स्थलीयों में से हमने केवल चुनिंदा ही या फिर यूं कहें कि कुछ ही लीला स्थलों ओ के दर्शन किए हैं
क्योंकि ठाकुर जी ने जो ब्रज में लीलाई की है उनका वर्णन तो किसी भी रूप में नहीं किया जा सकता और कितनी लीलाएं स्थली ऐसी हैं जो कि अभी भी बिल्कुल लुप्त है अर्थात जिनके बारे में अभी तक किसी को भी नहीं पता है
जैसे कि आज हम आप सभी को लेकर आए हैं नंद गांव में और आप सभी को जहां दर्शन कराने के लिए लेकर आए हैं इस स्थान को कई नामों से जाना जाता है जैसे की बृजवारी कुंड या फिर यूं कहिए अक्रूर गमन या फिर अक्रूर जी का मंदिर इस स्थान को कई नाम से जाना जाता है
यहां की कथा जब हमने सुनी तो हमें बहुत आनंद आया सर्वप्रथम हमने वह मार्ग देखा जिस मार्ग से श्री कृष्णा यहां पर आए थे और यहां से गए थे अर्थात् अक्रूर जी जब यहां पर आए थे श्री कृष्ण को लेने के लिए तब इसी मार्ग से आए थे जिस मार्ग की हमने वीडियो में बात कही है
अक्रूर जी के बारे में मैं आपको इतना ही बताना चाहूंगा कि जब हमें पता चला कि अक्रूर जी कौन थे और वह यहां पर क्यों आए थे तो हमें यहां की कथा कुछ अटपटी सी लगी अर्थात अक्रूर जी जो है वह नंद बाबा के भरता है और नंद बाबा के भरता होने के बावजूद अक्रूर जी का जो संबंध इस कथा में हमें सुनने को मिला वह था कंस के साथ कंस ने अक्रूर जी को यहां भेजो कृष्ण बलराम को लाने के लिए यानी कि अपने पास बुलाने के लिए
नंदीश्वर पर्वत अर्थात नंदगांव - नंदगांव में सभी असुरों को एक श्राप है कि यहां पर कोई भी असुर आज भी नहीं आ सकता अगर वह आएगा तो वह पत्थर का हो जाएगा।
इसी श्राप के डर से कंस कभी नंद गांव नहीं आया और ना ही कंस के दूत एक बार कंसके दो दूतों ने प्रयास किया नंद गांव में आने का तो हुआ वही जैसा श्राप था यानी की नंद गांव में आते ही वह दोनों असुर पत्थर के हो गए।
आज भी उन असुरों के उस चट्टानी रूप के दर्शन या फिर यूं कहिए उनकी रूपरेखा देखी जाती है नंद गांव में आज भी वह असुर पत्थर के रखे हुए हैं आप उनके स्वरूप के दर्शन जाकर कर सकते हैं स्वयं।
यशोदा कुंड के समीप चट्टानी रूप में दो शिलाये रखी हुई है जो कि वह दो असुर ही है जिनको "होउ बिलाउ" के नाम से जाना जाता है।
कंस हमेशा से सहारा लेता रहा के उसको स्वयं या फिर उसके दूतों को नंद गांव ना आना पड़े और कोई उसे ऐसा मिले जो श्री कृष्ण को वह अपने यहां बुला सके ऐसे ही कंस ने सहारा लिया अक्रूर जी का कृष्ण बलराम को अपने पास बुलाने के लिए।
नंद बाबा को जब पता चला कि श्री कृष्ण को अक्रूर जी लेने आए हैं तब वह भी नहीं जान पाए कि उनकी क्या मंशा थी और उन्होंने श्री कृष्ण को अक्रूर जी के साथ भेज दिया वीडियो में दिखाया गया स्थान ये वो हीं स्थान था।
जहां पर अक्रूर जी आए और अक्रूर जी को सभी ग्वाल वालों ने घेर लिया कि हम भी साथ चलेंगे तब अक्रूर जी के संग सभी ग्वाल बाल संग श्री कृष्णा बलराम यहां से मथुरा के लिए चले गए थे।
यहां की कथा आप आपको कैसी लगी हमें कमेंट्स में जरूर बताना जिससे हमारा मनोबल बढ़ता है आप सभी को ऐसे स्थानों के दर्शन कराने के लिए और हम आप सभी के कमेंट्स भी पढ़ते हैं जिससे हमें आनंद आता है कि आप सभी हमारे वीडियो को पसंद करते हैं।
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|| राधे-राधे ||
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Негізгі бет कंस की रणनीति और श्री कृष्ण के चाचा | कृष्ण बलराम को लेकर आओ |
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