Katha 38
Shri Guru Maharaj Ji Ne Ek Premi Parivar Ko Purane Ghar Jane Se Mana Kyu Kiya
सौभाग्यशाली गुरुमुखों, श्री हजूर सतगुरु देव दाता दयाल जी महाराज जी के सुंदर सुंदर दर्शन दीदार का आनंद लेते हुए प्रेम सहित मिलकर बोलो जयकारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय
सतगुरु जी के चरणों में आकर हर दिल ने ठंडक पाई है, प्यारे प्यारे इन दर्शन दीदार की सबको लाखों लाख बधाई है... बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय
श्री गुरुवाणी में वचन आए हैं ..
हुकुमे अंदर सबको , बाहर हुकम ना कोए , नानक हुकम जे बुझे
, ता हौ-में कहे ना कोई
कि जो कुछ भी है उस प्रभु परमात्मा के सतगुरु के हुकम के अंदर ही है उनके हुकम के बाहर कुछ भी नहीं
जो भी सेवक अपने सतगुरु की आज्ञा और मौज के अनुसार चलता है , अपने सतगुरु के हुकम की पालना करता है तो
फिर उसे कभी अहंकार नहीं खा सकता काल और
माया उस पर अपना प्रभाव नहीं डाल
सकते, कि जो भी सेवक अपने सतगुरु के हुकम
को मान लेता है ,अपने सतगुरु के हुकम को
पहचान लेता है वही अपने सतगुरु की कृपा और
रहमत को प्राप्त करता है
एक प्रेमी परिवार था ,श्री गुरु महाराज जी के चरणों में बहुत उनका प्रेम था ,संसार के कार्य व्यवहार करते हुए वह हर समय सतगुरु के चरणों के साथ अपने दिल की तार को जोड़कर रखते थे
एक बार उन्होंने ,एक नया घर
लिया और मन में यह विचार किया कि श्री अनंतपुर चलते हैं श्री गुरु महाराज जी के चरणों में विनती करते हैं, वह परिवार श्री अनंतपुर आया श्री श्री
108 श्री पंचम पादशाही महाराज जी श्री
अनंतपुर में विराजमान थे
दर्शन हाल पहुंचे श्री गुरु महाराज जी के चरणों में मथा टेका, विनती की , स्वामी जी
हमने नया घर लिया है उसका शुभ मुहूर्त करना है तो आप जी महूरत के दिन अवश्य ही हमारे घर कृपा करें श्री गुरु महाराज जी ने आशीर्वाद दिया और
फरमाया कि आप हमें दिल से याद करना हम
आपको वहीं पर ही मिलेंगे
प्रसाद लेकर वह परिवार जब चलने
लगा तो श्री गुरु महाराज जी मौज में आए और
उस परिवार से फरमाने लगे
कि आप लोग जिस दिन अपने घर का मुहूर्त करेंगे तब आप लोग उसी दिन ही अपने नए घर में प्रवेश
करना फिर अपने पुराने घर में वापस मत
जाना
अब है परिवार कुछ सोचने लगा फिर श्री चरणों में विनती करते हैं स्वामी जी जिस दिन शुभ मुहूर्त होगा उसके बाद पुराने घर से सब समान लाकर हम नए घर में लाएंगे तो पांच छ दिन लग
जाएंगे
तो श्री गुरु महाराज जी ने फरमाया
कि ऐसी व्यवस्था
करो कि सारा सामान वहां से ले आओ दोबारा
तुम्हें वहां जाना ही ना
पड़े
श्री गुरु महाराज जी की आज्ञा मानकर
उनके वचनों पर विश्वास करके वह प्रेमी
परिवार घर आ गया
और सत्संग की शुभ मुहूर्त की तैयारियों
में लग गया
सोचने लगा श्री गुरु महाराज जी ने ऐसे
कृपा भरे वचन फरमाए हैं इसमें हम
प्रेमियों का ही कल्याण
होगा
हर समय बस यही सोचने लगे कि मैं
निर्बल अति दीन हूं, तुम समरथ बलवान, सब
विधि मम रक्षा करो दीन बंधु
भगवान
हर समय अपने कार्य व करते हुए भी
सतगुरु का ध्यान अपने दिल में बसा कर रखते
शुभ महूरत का दिन आया सत्संग हुआ
संत महात्माओं ने घर में चरण छु आए
उस प्रेमी परिवार ने श्री गुरु महाराज जी का कृपा उनका आशीर्वाद उनकी हजूरी का अनुभव किया.. सत्संग की समाप्ति पर सब जो घर था
अपना समेटा
वही रुके , सुबह जब हुई तो उन्हें यह पता लगा कि
जो उनका पुराना घर था वह उसी एक दिन पहले
ही मुहूर्त वाले दिन रात में ही उस घर की
छत और उस घर की एक दीवार कमजोर होने के
कारण रात को ही गिर गई थी
तो श्री गुरु महाराज जी ने किस प्रकार
अपने सेवकों की अपने भक्तों की संभाल की
वह प्रेमी परिवार यह विचार करने लगा कि
अगर हमने श्री गुरु महाराज जी की आज्ञा और
हुकम नहीं मानी होती तो आज हमारा क्या हल
होता ..समय निकालकर अपनी सुविधा के अनुसार
वह प्रेमी परिवार फिर से श्री आनंदपुर आया
अपने प्रेम से अपने शुकराना के भाव से
श्री गुरु महाराज जी के चरण जो थे व
आंसुओं से भिगो दी
विनती करने लगे स्वामी जी जैसे आपने हमें इस लोक में संभाला है तो परलोक में भी हमारी संभाल करना श्री गुरु महाराज जी ने फरमाया कि अगर आप अपने
सतगुरु की आज्ञा और हुकम पर चलोगे भक्ति
के सरल नियमों की पालना श्रद्धा विश्वास
से करोगे तो हम इस लोक में भी तुम्हारे
साथ हैं परलोक में भी तुम्हारे साथ हैं इस
समय भी तुम्हारे अंग संग है परलोक में भी
तुम्हारे अंग संग रहेंगे
ऐसे ही एक बार श्री श्री १०८
श्री द्वितीय पादशाही महाराज जी एक गांव में सत्संग की अमृत वर्षा बहा रहे थे
पावन श्री चरण कमलों में प्रेमी जन बैठकर अमृत में प्रवचनों का लाभ उठा रहे तो एक दिन सत्संग के समय उस गांव का मुखिया भी सत्संग श्रवण करने
आया, श्री सदगुरु देव महाराज जी के अमृतम वचन सुनकर उसका दिल भराया सत्संग की समाप्ति पर व श्री गुरु महाराज जी के चरणों में पहुंचा और उनके
चरणों में गिरकर रोने लगा ,श्री गुरु महाराज जी ने उस मुखिया से पूछा ,प्रेमी गुरुमुख क्या हुआ क्यों रो रहे हो ? उसने बेनती की स्वामी जी मेरी पूरी
जिंदगी बीत गई
मैं इतने सालों से जप तप दान व्रत आदि कर रहा था और उसे ही भक्ति मानता था और आज आपके वचन सुनकर यह एहसास हो रहा है कि जीव जब तक सतगुरु की चरण शरण में नहीं आता तब तक उसका
कल्याण नहीं हो सकता, आज तक तो मैंने जितनी
भी कार्यवाही की अपने मन के अनुसार की
मेरा सारा समय तो यूं ही बर्बाद हो गया अब
मुझे तो यह लगता है कि मेरा कल्याण नहीं
हो सकता ,यही सोचकर वह प्रेमी जो था बारबार रो
रहा था श्री गुरु महाराज से विनती कर रहा था
श्री गुरु महाराज जी ने फरमाया कि प्रेमी जीव, जब भी संतो महापुरुषों की चरण
शरण में आ जाता है उनकी आज्ञा और हुकम के
अनुसार अपना जीवन चलाता है तो उसका कल्याण
निश्चित ही हो जाता है जो समय निकल गया जो
चला गया ,वह तो वापस नहीं आ सकता पर जितना
समय तुझे मिला है आगे जितना भी मिला है वह
तू सतगुरु की चरण शरण ग्रहण करके उनकी
आज्ञा के अनुसार भक्ति की सच्ची कमाई
कर,
Негізгі бет Katha 38 | Shri Guru Maharaj Ji Ne Ek Pariwar Ko Purane Ghar Jane Se Mana Kyu Kiya ? SSDN | 7 May |
Пікірлер: 22