Katha 44
गुरुमुखों, अगर जानना हो हमारा भाग्य अच्छा है कि बुरा है??
तो महापुरुष हमे बड़ा आसान तरीका बताते है
गुरु रामदास जी कहते है - हर हर नाम जपया आराध्या के जिसका मन नाम जपने लग जाए उस मालिक की आराधना करने लग जाए समझ लेना भाग सुभागा है
भाग्य नेक है और अगर मन नाम में मन नहीं जुड़ता तो अभी
भाग्य नेक नहीं है ..
जन नानक हर कृपा धारी मन हर हर मीठा लाए जि
अगर जानना हो समझना हो कि हमें गुरु की
बाह मिली है कि नहीं बड़ा आसान है
महापुरुष कहते है, जिस दिन तुने श्री गुरु महाराज जी की बाह पकड़ ली या श्री गुरु महाराज जी ने तेरी बाह पकड़ ली
तो ये इशारा क्या है
तुझे नाम मीठा लगने लगेगा
एक घंटा भजन अभ्यास करोगे तो मन करेगा दूसरा भी घंटा भी बैठ जाऊ फिर नितनियम खत्म करने की जल्दी नहीं
होगी
फिर जल्दी पता किस बात की होगी कब काम खत्म हो नाम में बैठू
नाम में रस आना शुरू हो जाएगा
जिस नाम में मन नहीं जुड़ता वह मीठा लगने लगेगा,
ये निशानी है महापुरुष कह रहे हैं कि श्री गुरु महाराज जी ने तेरी बाह पकड़ ली है
श्री गुरु महाराज जी की बाह क्या है - पांच नियम...
नितनेम से पंच नियम ये श्री गुरु महाराज जी की बाह है
तू नितनेम से पंच नियम मत छोड़
श्री गुरु महाराज जी तेरी बाह नहीं छोडेगें.
यहां पर ना दो बातें होती है गुरुमुखों..
थोड़ी सी गहराई से विचार कर लेते हैं इसके ऊपर
एक बच्चा मेले में गया पिता की उंगली पकड़ रखी है बच्चे ने महापुरुष दृष्टांत दिया करते थे बच्चा
मेले में गया पिता ने बच्चे की उंगली पकड़
रखी ... बच्चे ने पिता की उंगली पकड़
रखी मेले में घूम रहा है बच्चा .. कई प्रकार के खिलौने हैं
इशारा करता है पिताजी को पिताजी खिलौना ले देते खुश है बच्चा ... झूले हैं.।।झूलो में झूलता है
खुश है हर प्रकार से.।।
अब धक्का लगा उंगली छूट गई
वही मेला है वही खिलौने हैं वही झूले हैं पर बच्चा रो रहा
है कई लोगों ने चुप कराने की कोशिश की पर चुप नहीं हो रहा
क्यों पिता की उंगली छूट गई
यहां पर दो बातें विचार करने वाली इस दुनिया के मेले
में सुख उसी के पास है इस संसार में जिसने परमपिता श्री गुरु महाराज जी की उंगली पकड़ रखी है
वही दुनिया का मेला है उंगली छूट
गई दुखों का धक्का लगा उंगली छूट गई अब
दुख ही दुख है
कोई चीज मन को नहीं भाए गी
पिता मिल गया उंगली पकड़ ले
महापुरुष
समझाते है
इस चीज में दृष्टांत में दो बातें बड़ी कीमती है समझने वाली है सबसे पहले कभी भी इस बात पर अहंकार नहीं करना कि मैं नितनियम से पंच नियम करता हूं मैंने श्री गुरु महाराज जी की बाह पकड़ रखी है
क्योंकि हम बच्चे हैं हमारे में इतनी ताकत नहीं
दुख का झटका लगेगा दुख का धक्का लगेगा मेले में हमसे
उसकी बाह छूट जाएगी
पर अगर श्री गुरु महाराज जी ने बाह पकड़ ली
फर्क है दोन बातों में -- एक बच्चे ने पिता की बाह पकड़ी है दुक्का धक्का लगा बाह छूट जाएगी
एक पिता ने बच्चे की बाह पकड़ी है वो ताकतवर है चाहे कितने भी धक्के लगे पिता बच्चे की बांह नहीं छोड़ता
संत कहते है पुकार किया करो कि मेरी बांह
तू पकड़ ले श्री गुरु महाराज जी
हमारे रहबर जी कहा करते थे कि मैं कमजोर हूं मैं पकडू छूट
जाएगी तू पकड़ ले पर यहां पर एक बात विचारने वाली और
भी है पिता कभी भी छोटे बच्चे की बाह पकड़ते है ध्यान से समझना माता-पिता बच्चे की बाह पकड़ते हैं कभी देखा है बड़ा बच्चा या बड़ा आदमी जा रहा हो उसकी पिता ने बापकड़ी हो ... नहीं ...पिता बच्चे की बाह पकड़ता है
माता-पिता बच्चे की बाह पकड़ते हैं बड़े की नहीं जिस दिन हम बड़े बन जाते हैं जिस दिन हमें लगता कि हम कुछ बन गए बा छूट जाएगी
वो गुरु तभी तक बा पकड़ेगा जब तक हम बचे रहेंगे महापुरुष वचन किया करते है.।बच्चे बने रहोगे तो बचे रहोगे
जिस दिन बड़े बन गए कि मैं कुछ बन गया हूं मेरा इतना नितनेम मेरी इतनी कमाई मैं इतना बड़ा.।जो भी मन में
अहंकार आ गया बड़े औधे पर पहुंच गए किसी...
जिस दिन हम बड़े बन गए श्री गुरु महाराज जी बाह छोड़
देंगे क्योंकि हमें लगने लग ना कि हमें तो बहुत कुछ आता
है यहां पर बात हो रही है अहंकार की सिर्फ अहंकार ही है जिसकी बाह गुरु नहीं पकड़ता
अहंकार आते ही बांह छूट जाती है
जब तक विनम्रता में
रहेंगे गुरु बा पकड़े रखेगा
तो ऐसे ही एक बार श्री हजूर सतगुरु देव दाता दीनदयाल महाराज
जी परम धाम में विराजमान थे प्रेमियों ने श्री चरणों में प्रार्थना की कि महाराज जी श्री पंचम पाश महाराज जी ने हमारी बाह पकड़ी हुई थी अब आप जी कृपा करना हमारी
पक्की बां पकड़ के रखना श्री हजूर प्यारे सतगुरु देव दता दीनदयाल महाराज जी ने बड़े
मौज में आकर बड़ी प्रसन्नता से फरमाया कि
आप पांच नियमों की पालना और दो घंटे भजन
रोज करना फिर हम गारंटी देते हैं कि हम आपकी यहां भी बाह पकड़े रखेंगे और परलोक
में भी बाह पकड़े रखेंगे अब हमारा परम धर्म है हम श्री गुरु महाराज जी के पावन आदेशों पर चलते हुए शुभ आज्ञा पर चलते हुए श्री दरबार के पांच
नियमों का पालन करें दो घंटे भजन की जो श्री आज्ञा हुई है उस नियम को निभाएं जिससे कि श्री सतगुरु देव महाराज जी की
प्रसन्नता मिले शुभ आशीर्वाद मिले और
हमारे जीवन का कल्याण हो जाए
तो गुरुमुखों ये हमारा परम स्वनिम सौभाग्य है कि हमें श्री सतगुरु देव महाराज जी की पावन शरण का संगत का दर्शनों का अमृत वचनों का अलौकिक अलभ्य लाभ
मिला सतगुरु की पावन रहनुमाई सेवक के जीवन को आशा बना देती है
सेवक के जीवन में खुशियां भर देती है
और सेवक का धर्म है कि श्री सतगुरु देव
महाराज जी की आज्ञा पर चले श्री वचनों का
पालन करें जब सेवक अपने सतगुरु के वचनों
का श्रद्धा प्रेम से पालन करता है तो
सतगुरु अपने सेवक को किसी प्रकार से कोई
कमी नहीं रहने देते जैसा कि वर्णन आया
कि सेवक के सिर पर सदा समरथ गुरु का हाथ
जहां जहां शिष्य सिमर ही तहां तहां गुरु साथ
सेवक के साथ सदैव सतगुरु रहते हैं जब
Негізгі бет Katha 44 | Naam Dhaan Liya Hai To Apne Bhagya Ko Mazboot Banaye | SSDN | Shri Guru Maharaj Katha |
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