कवि- मुरली दीवान
कविता- 'गाजर घास'
Presentation- Pahadiwood
Presentation recorded by- Saurabh Jaggi, Prashant Uniyal
Pahadiwood is dedicated to create rich music of different folks and conserve literature from every part of India. We are starting this objective from our beautiful North-Indian state Uttarakhand.
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मुरली दीवान, एक ऐसा नाम जो समकालीन गढ़वाली कवियों में किसी परिचय का मोहताज़ नहीं, कलश संस्था के संस्थापक सदस्य।'फूल संगराद' कविता संग्रह प्रकाशित।उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर फरीदाबाद दिल्ली गाजियाबाद तक कवि सम्मेलनों में प्रतिभाग।गढ़वाली ग्लेमरस कवि के रूप में चर्चित, लोक प्रियता में काफी आगे।अब तक कलश के लगभग 200 कवि सम्मेलनों में प्रतिभागl एक ऐसा कवि जो कबीर की तरह व्यंग्य को हथियार बनाता है और उन्हीं की तरह ठेठ लोक समाज से शब्द, बिम्ब और विषय भी उठाता हैl एक ऐसा कवि जो कविता के सभी फार्मेट्स में लोकप्रिय है, चाहे वो मंचीय कविता हो, पाठकों की कविता हो या नुक्कड़-चौपाल की गप्प-गोष्ठी में शामिल कविताl एक ऐसा कवि जो फुल टाइम कवि नहीं है, जिसके लिए कविता खाए-अघाए लोगों सरीका शौक भी नहीं हैl मुरली दीवान गाँव में रहकर खेती-किसानी से जुड़े हुए हैं और चुराये हुए लम्हों में मन के उद्गार को कविता के रूप में व्यक्त करते हैंl
अपर गढ़वाल में सबसे पुराने मिडिल स्कूल नागनाथ के समीप के देवर गाँव में 1952 में जन्मे थे मुरली दीवान. औपचारिक शिक्षा उनकी भले ही मात्र इण्टरमीडिएट हो पर समाज को समझने-विश्लेषित करने और लोक की आवाज को कविता में ढालने के हिसाब से उनका कौशल, शिक्षा की बड़ी-बड़ी डिग्रियों पर भारी पड़ता हैl मुरली दीवान का गढ़वाली कविता में वही स्थान है जो कुमाँउनी कविता में शेरसिंह बिष्ट अनपढ़ का है. वे अपने सटीक शब्दों, जीवंत शब्दचित्रों और मौलिक बिम्बों के द्वारा ऐसा सम्मोहन सृजित कर देते हैं कि पाठकों-श्रोताओं का उन्हें छोड़ने का मन ही नहीं करता हैl दीवान-ए-आम हो या दीवान-ए-खास, मंचीय गढ़वाली कविता के वे ऐसे बेताज़ बादशाह हैं जिनके इस मुकाम पर पहुँचने में स्वर (तरन्नुम), सूरत और सिफारिश की कोई भूमिका नहीं हैl
फूल संगरान्द नाम से एक कविता-संग्रह 2010 में प्रकाशित हो चुका हैl इस संग्रह में कुल 29 कविताएँ शामिल हैंl संग्रह की भूमिका में ही दीवान साफगोई से लिखते हैं कि कविता लिखना और फाड़ के फेंक देना का सिलसिला तो बहुत पहले शुरू हो गया थाl कविता सुनाना, पहले-पहल शादी-विवाह या चाय-पान की दुकानों की महफिलों तक सीमित रहा पर इन्हें सहेजने की जरूरत तब महसूस हुई जब लोग वही वाली कविता दुबारा सुनाने की मांग करने लगेl ये उनकी कविता की ही ताकत थीl
फूल संग्रांद में शामिल कविताओं में महिला-विमर्श संग्रह का प्रमुख स्वर दिखायी देता हैl कवि ने न सिर्फ पर्वतीय-महिलाओं की कठिन परिस्थितियों को शब्द-चित्रों के माध्यम से उभारा है बल्कि उन्हें पहाड़ के विकास और जीवन की रीढ़ भी माना हैl एक पहाड़ी महिला की नियति जो किशोरावस्था में ही विवाहित होकर युवावस्था की दहलीज़ पर कदम रखते ही अभावों और कष्टों में पिसती हुई दुनिया से ही विदा हो जाती है -
रामि तैका घौर आइ छै मेलुड़ी-न्योलि बणीं
आज से छतीस बरस पैलि वैकि ब्योलि बणींl
डेळि माँ रन्दा छा बैठ्यां, सन्तोष अर धीत जख
पेट भरी भूख खांण ये किसमैं रीत जख
चैदा बर्स माँ स्य ब्योलि बणीक ससरूड़ा चली
बीस बर्स पूरा नि ह्वे छा स्य पितरकूड़ा चलीl
मुरली दीवान को मंचीय कविता के माध्यम से जानने वालों के दिमाग में उनकी छवि एक ऐसे हास्य कवि की है जो अपनी कविता में व्यंग्य का कुशल प्रयोग करते हुए श्रोताओं को देर तक मंत्रमुग्ध करने में समर्थ हैंl यूट्यूब पर भी उनकी मंगतू, मोबाइल, भरत मिलाप, धार मंगौ गैणुं आदि जो लम्बी कविताएं हैं वे भी उनकी छवि हास्य-व्यंग्य कवि की ही बनाती हैं जबकि वास्तविकता ये है कि मुरली दीवान नौ सुरों वाली मुरली की सरसता वाले ऐसे कवि हैं जिनमें दीवाने सी दीवानगी भी है और सादगी भीl ये दीवानगी कविता के लिए है, समाज से लेकर समाज को लौटाने के लिए है और जैसा देखा वैसा कविता में बताने को लेकर हैl उनकी काव्यभाषा आम बोलचाल की सीधी-सहज भाषा है और ऐसा लगता है कि सटीक शब्द और सुविचारित बिम्ब स्वतः ही उनकी जिह्वा-कलम पर प्रकट हो रहे होंl अगर मुरली दीवान जी कविता में लम्बी कविताओं से इतर विविध प्रयोगों वाली छोटी-छोटी कविताएँ भी लिखते रहें तो कोई संदेह नहीं कि उनकी कविताओं के आगामी संग्रह गढ़वाली साहित्य के महत्वपूर्ण विरासत के रूप में संजोए जाएंगेl फूल संगरान्द, कविता संग्रह को पढ़ते हुए एक ऐसी वाटिका में विचरण की अनुभूति होती है जिसमें खिले हुए विविधरंगी, सुगंधित पुष्प अपनी महक से पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैंl
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