दिवाली की छुट्टियां लगी थीं, पुतुल उदास बैठा था। जानता था, इस बार भी पापा-मम्मी उसे दादा-दादी से मिलाने नहीं लेकर जाएंगे ।
दोनों काम का बहाना करके हमेशा टाल देते हैं। वह ऐसा सोच ही रहा था, तभी मम्मी ने आवाज लगाई ।
चलो पुतुल खाना खा लो....
पर पुतुल के दिमाग में तो आइडिए चल रहे थे...। फिर कुछ सोचकर पुतुल ने पापा को आवाज लगाई ।
पापा, ले चलिए न मुझे उनके पास... दादा-दादी को भी तो हमारी याद आती होगी न, उन्हें कैसा लगता होगा अकेले ? Page - 01
मम्मी मम्मी, पापा से कहो ना, इस बार दिवाली पर गांव चलें। दादा-दादी के साथ कितना मजा आता है...!
अगली बार पक्का चलेंगे बेटा, मेरी बहुत जरूरी मीटिंग्स चल रही हैं, फिर तुम्हारी मम्मी का भी तो ऑफिस है....
पापा, दादी-दादा आपके मम्मी-पापा हैं, उनका भी तो मन करता होगा न आपसे मिलने का, मैं दूर चला गया तो क्या आप रह सकेंगे मेरे बिना ? Page - 02
अनिमेष ने चौंककर पुतुल की तरफ देखा और कुछ वक्त खामोश रहने के बाद बोले-
हम चलेंगे बेटा गांव और दिवाली भी वहीं मनाएंगे...।
नेहा, मैंने तो ये सोचा ही नहीं था कि बड़े होकर पुतुल भी कहीं और जाकर बस गया हम कैसे रहेंगे उसके बिना...!!
ठीक कह रहे हैं आप, मैं कैसे रह पाऊंगी अपने बेटे के बिना !! Page - 03
वे गांव पहुंच गए। दादा-दादी से मिलकर पुतुल बहुत खुश हुआ, ये खुशी ही उसकी असली दिवाली थी।
अम्मा-बाबूजी, अब आप हमारे साथ ही रहेंगे हमेशा।
मम्मी-पापा की बात सुनकर पुतुल की आंखों में खुशी के हजारों दीप झिलमिला उठे । page - 04
#balbhaskar
Негізгі бет खुशी के दीप | khushee ke deep | lamp of happiness
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